एक समय की बात है एक सुनसान जंगल था जिसमे एक महात्मा रहते थे। उनकी एक छोटी सी कुटिया थी जिसमे वह दिन भर भगवान का स्मरण किया करते थे। उनका जीवन ईश्वर की भक्ति मे ही गुजर रहा था।
एक दिन वह श्री हरि की माला जपने मे व्यस्थ थे। आसमान मे गनघोर काले बादल छाये हुए थे बिजली भी कडकने लगी थी इतने मे तेज मूसलाधार बरसात शुरू हो गयी। वह सर्दी का समय था सर्दी बढने पर महात्मा का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा उसने अपनी कुटिया का दरवाजा बन्द किया और कुटिया के अन्दर ही आग जलाई ताकि सर्दी से बचाव हो सके। वह फिर से ईश्वर के नाम का जाप करने लगा।
थोडी ही देर बाद उसे सुनाई दिया कि कोई कुटिया का दरवाजा खटखटा रहा है। उसने दरवाजा खोला तो बाहर एक व्यक्ति खडा था उसने कहा- महाराज, मै एक राहगीर हूँ तेज मूसलाधार बरसात मे अपना रास्ता भटक गया था। वह बहुत भीग भी गया था वह महात्मा से विनती करने लगा कि महात्मन्, क्या मै आज की रात आपकी कुटिया मै बीता सकता हूँ। सवेरा होते ही मै अपने घर की ओर रवाना हो जाऊँगा।
महात्मा ने कहा- अरे, भाई इसमे पूछने की क्या बात है इसे अपनी ही कुटिया समझो। इतना कहकर वह कुटिया के भीतर आ गया। महात्मा बोले- मेरी कुटिया थोडी छोटी है इसमे दो व्यक्ति लेट सकते है, तीन व्यक्ति बैठ सकते हैं और चार व्यक्ति खडे हो सकते है आज की रात हम दोनों इस अंगिठी के सहारे गुजार लेते है। दोनों आग के पास बैठे थे व ईश्वर की भक्ति ज्ञान की बातें कर रहे थे। दोनों को एक दूसरे की बातों मे बड़ा ही रस आ रहा था।
थोड़ी देर होने पर दूबारा कुटिया का दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। महात्मा ने दरवाजा खोला तो देखा एक व्यक्ति सामने खडा था वह बरसात मे पूरा भीग चुका था और सर्दी से काँप रहा था। वह व्यक्ति बोला- हे महात्मा जी मै एक व्यापारी हूँ शहर की ओर जा रहा था अचानक ही मूसलाधार बरसात शुरू हो गयी। आप मुझ पर दया किजिए और मुझे भीतर आने की अनुमति दिजिए।
महात्मा बड़े ही स्नेह से बोले- इसमे पूछने की क्या बात है आप भीतर आ सकते है इसे अपनी ही कुटिया समझों। यह कुटिया बहुत छोटी है इसमे दो व्यक्ति लेट सकते है तीन व्यक्ति बैठ सकते हैं और चार व्यक्ति खड़े हो सकते है।
तीनों कुटिया मे बैठे थे बीच मे आग की अंगीठी जल रही थी। थोडी ही देर बाद पुनः एक बार कुटिया के दरवाजे के खटखटाने की आवाज आई। महात्मा ने दरवाजा खोला तो देखा सामने एक व्यक्ति खड़ा था वह बोला- महाराज जी, मै एक किसान हूँ लम्बा सफर तय करके अपने घर की ओर जा रहा था मगर अचानक से यह मूसलाधार बरसात हो गयी और रूकने का नाम ही नही ले रही। कृपया मुझे भीतर आने की अनुमति दे। वह व्यक्ति भी बरसात मे पूरा भीग चुका था और सर्दी के मारे काँप रहा था।
महात्मा ने बडे ही प्यार से जवाब दिया- किसान भाई, आप अवश्य भीतर आ सकते है इसे मेरी नही अपनी ही कुटिया समझो। कुटिया छोटी है मगर हम रात्रि खडे रहकर गुजार सकते है। वह व्यक्ति भी भीतर आ गया और सभी कपकपाते हुए अंगीठी के सहारे खडे हो गये और अंगीठी का ताप ले रहे है। सभी ने अपना अपना परिचय दिया और अपनी अपनी बातें शुरू का दी। सौभाग्य से सभी आस्तिक व परोपकारी व्यक्ति थे। सभी ने ईश्वर का नाम जपना शुरू किया कुछ ही देर मे ईश्वर भक्ति मे खोये सभी भक्तों ने प्रभू के भजन शुरू कर दिया। प्रभू के स्मरण व भजन मे सभी को रस आ रहा था।
ईश्वर की भक्ति मे रात्रि गुजर गयी और सवेरे सभी अपने अपने रास्ते चल दिये। महात्मा जी को उस रात जो आन्नद आया वह एक अनर्विचनीय था मानो जैसे कि उस सुनसान जंगल और मूसलाधार बरसात मे एक छोटी सी कुटिया मे भक्तिरस का प्याला पी लिया हो उस दिन उसे जीवन का सच्चा आन्नद मिला। अपनी आत्मानुभूति को व्यक्त करते हुए महात्मा जी ने कहा- कि आज तक मैनें मात्र ईश्वर का नाम ही रटा था सिर्फ स्मरण किया था किन्तु उस रात ऐसा लगा कि मानो ईश्वर के साक्षात दर्शन हो गये है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दूसरों के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार रहना ही आनंद की कुंजी है जब हम दूसरे को सुख देने का भाव मन मे रखते है तो हमारे भीतर आनंद का स्त्रोत स्वयं बहने लगता है। यदि तुम कल्याण चाहते हो, स्वयं को सुखी बनाना चाहते हो तो सब को सुख देना प्रारम्भ कर दो।