धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—405

एक परिवार था वो गरीब था। खाने को कुछ नहीं था। काफी सोचा की काम मिले मगर काम नहीं मिला। दो बच्चे थे, बीबी थी। एक दिन उन्हें विचार आया कि इस गांव में काम मिलना मुश्किल है। चलो कहीं और चलते हैं। इस इरादे से वे एक दिन गांव छोड़कर चल दिये। रात का समय था, रास्ता भी जंगली था। सोचा वृक्ष के नीचे रात गुजारी जाये। आदमी ने अपने एक लड़के को लकड़ी चुनने तथा दूसरे को पानी लाने के लिए भेज दिया तथा बीबी को चूल्हा बनाने के लिए कहा और उसने जगह साफ कर दी। चारों ने अपने-अपने काम कर लिए।

चूल्हा जलाया गया पानी गर्म होने लग गया। वृक्ष के ऊपर हंस रहता था वो सोचने लगा यह कैसा मूर्ख हैं इन्होनें चूल्हा तो जला दिया मगर इन के पास पकाने को तो है ही नहीं कुछ भी। हंस ने उनसे पूछा – तुम्हारे पास पकाने को क्या है? वो आदमी बोला-तुझे मार के खायेंगे।

हंस बोला – मुझे क्यों मारोगे? आदमी बोला – हमारे पास न पैसा है और न ही सामान तो क्या करें? हंस सोच में पड़ गया। इन्होनें चूल्हा भी जला लिया है। सब कर्मशील हैं, मुझे तो यह खा ही जायेंगे तो हंस बोला – अगर मैं आपको धन दे दूं तो मुझे छोड़ दोगे।

घर का स्वामी बोला – हां, छोड़ देंगे। हंस कहने लगा मेरे साथ चलो मैं तुम्हें धन देता हूं। हंस उन को थोड़ी दूर ले गया और चोंच से इशारा किया और कहा कि यहां से निकाल लो। उन्होंने गढ्ढा खोदा और वहां से धन निकाल लिया। हंस का धन्यवाद कर के वापस अपने गांव आ गये और एक ही दिन में खूब मौज से रहने लग गए। अब उनके घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। पड़ोसी ने देखा कि इस परिवार के पास ऐसी कौन सी चीज आ गयी जो इन के पास इतना कुछ आ गया।

उसने छोटे लड़के को बुला कर सारी बात पूछ ली कि पैसा कहाँ से आया है। उनके भी दो बच्चे थे। उन्होंने भी ऐसी योजना बनाई और चल दिये। उन्होंने भी उसी वृक्ष के नीचे डेरा लगा लिया। आदमी ने अपने बड़े लड़के को कहा – लकड़ी लाओ तथा छोटे लड़के को पानी लाने के लिए कहा परन्तु दोनों आनाकानी करने लगे।

बीबी ने भी कहा कि मैं थक चुकी हूं। जैसे-जैसे पानी लकड़ी इकट्ठी हो गई और पानी गर्म होने लगा। हंस फिर आया और बोला तुम्हारे पास खाने को तो नहीं है तो फिर पानी गर्म कर रहे हो। आदमी बोला तुझे मार कर खायेंगे।

हंस मुस्कुरा उठा और बोला – मारने वाले तो तीन दिन पहले आये थे। तुम अपना समय खराब मत करो। घर जाओ तुम मुझे क्या मरोगे तुम तो आपस में ही लड़ रहे हो। जिन्होंने दूसरों को जितना होता है वे खुद नहीं लड़ते।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, संसार का नियम भी ऐसा ही है। जिन लोगों ने तरक्की करनी है वे मिलकर चलते हैं और आज भी संसार में उन का ही बोलवाला है। जो आपसी तालमेल में रहते हैं वे ही समाज रूपी हंस को जीत सकते हैं।

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