मेवात क्षेत्र 31 जुलाई 2023 की हिंसा के बाद चर्चा में है। हर कोई मेवात में रहने वाले मेव के बारे जानना चाहते हैं। आज हम आपको मेवात और मेव के बारे में दे रहे हैं विस्तृत जानकारी….
साल पंद्रह सौ सत्ताइस की बात है यानी आज से करीब 500 साल पहले। मुगल शासक बाबर और राजपूत राजा राणा सांगा के बीच उत्तर भारत पर वर्चस्व के लिए खानवा की जंग चल रही थी। इसमें हसन खान मेवाती राजपूतों का साथ दे रहे थे। बाबर के कब्जे में हसन खान का बेटा था। बाबर ने हसन के बेटे को रिहा कर दिया और इस्लाम की दुहाई देते हुए अपने खेमे में मिल जाने का प्रस्ताव दिया।
हसन खान मेवाती ने इसके बावजूद राणा सांगा का साथ दिया। इस जंग में राणा सांगा की हार हुई और हसन खान को अपनी जान गंवानी पड़ी। हसन खान मेवात के मेव मुसलमान थे।
हरियाणा का पूर्वी मेवात जिला और राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहां मेव करीब 1 हजार साल से रह रहे हैं। मेव मुस्लिमों के ओरिजिन को लेकर कई थ्योरी हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इनकी जड़ें ईरान में हैं। वहीं दूसरे इन्हें मीणा जनजाति से जोड़ते हैं।
एक थ्योरी के मुताबिक मेव हिंदू राजपूत थे। इन लोगों ने 12वीं और 17वीं शताब्दी के बीच औरंगजेब के शासनकाल तक इस्लाम अपना लिया था। ब्रिटिश एरा में मीणा से मेव बनने की थ्योरी सबसे पहले एथनोग्राफर और अलवर स्टेट के पॉलिटिकल एजेंट मेजर पी डब्ल्यू पॉवलेट ने दी। उन्होंने बताया कि मेव समुदाय मीणाओं से जुड़ा है।
पॉवलेट ने आठ्ठारह सौ अठत्तर के उलवुर के गजेटियर में लिखा है- मेव और मीणा शब्दों के बीच समानता से पता चलता है कि यह मीणा से निकला हुआ छोटा रूप है। दोनों समुदायों में सिंगल, नाइ, डुलोत, पिमडालोत, डिंगल, बालोट जैसे कई कुलों के नाम समान हैं।
एक और कहानी खान उपाधि से जुड़ी हुई है। साल तेरह सौ पचपन में कोटला किले के जादौन राजपूत राजा लाखन पाल के दो बेटे कुंवर सोनपर पाल और कुंवर समर पाल दिल्ली सल्तनत में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के यहां काम करते थे।
एक बार फिरोज शाह तुगलक शिकार पर गए थे। दोनों भाई कुंवर सोनपर पाल और समर पाल भी उनके साथ थे। इस दौरान एक बाघ ने सुल्तान पर हमला कर दिया। ऐसे में कुंवर सोनपर पाल ने अपने शानदार तीरंदाजी कौशल से बाघ को मारकर सुल्तान को बचा लिया।
इसके बाद सुल्तान ने दोनों भाइयों को खान की उपाधि दी और कुंवर सोनपर पाल का नाम नाहर खान कर दिया और कुंवर समर पाल का नाम बदलकर छजू खान कर दिया। इतिहासकार शैल मायाराम ने ‘अगेंस्ट हिस्ट्री, अगेंस्ट स्टेट: काउंटरपरस्पेक्टिव फ्रॉम द मार्जिन्स’ में इसका जिक्र किया है।
साल तेरह सौ बहत्तर में फिरोज शाह तुगलक ने मेवात का शासन राजा नाहर खान मेवाती को सौंप दिया था। राजा नाहर खान ने ही मेवाती शासकों को ‘वली-ए-मेवाती’ उपाधि दी थी। उनके वंशज पंद्रह सौ सत्ताइस तक इसी उपाधि का इस्तेमाल करते रहे। बाबर से लड़ने वाले हसन खान इन्हीं के वंशज थे।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर हिलाल अहमद के मुताबिक अठ्ठारह सौ इक्हतर में पहली जनगणना में मेव को हिंदुओं के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। वहीं उन्नीस सौ एक की जनगणना में मुसलमानों के रूप में।
मेव पहले हिंदू और इस्लामी दोनों रीति-रिवाजों का पालन करते थे। हिंदू और मुस्लिम महिलाएं मिलकर कुओं की पूजा किया करती थीं, जिसे ‘हकीका’ कहा जाता था, ये खुद को भगवान कृष्ण का वंशज और भगवान श्रीराम का अनुयायी मानते हैं। इसीलिए ये ईद के साथ—साथ हिंदू त्यौहार भी मनाते है। लेकिन उन्नीस सौ छब्बीस में जब आर्य समाजियों ने शुद्धि और संगठन आंदोलन शुरू किया तब तब्लीगी जमात ने मेव समुदाय को फिर से इस्लामी खेमे में शामिल कर लिया। कद-काठी और पहनावे को देखें तो मेव मुस्लिमों की फेटा पगड़ी और गैर मेव की पगड़ी एक जैसी है।
महिलाएं बुर्का नहीं बल्कि सिर पर हल्का घूंघट रखती हैं। वे हिंदुओं की तरह एक ही गोत्र में शादी नहीं करते। हालांकि, इस्लाम चचेरे भाइयों के साथ शादी की अनुमति देता है। कई परिवार अभी भी बच्चों को उनके हिंदू नामों से बुलाते हैं। जैसे अमर सिंह, चांद सिंह, सोहराब सिंह मेव। इनमें खान जैसे उपनाम उनकी मुस्लिम पहचान को व्यक्त करने के लिए जोड़े गए हैं।
इतिहासकार शैल मायाराम ने साल दो हजार में एक लेख में लिखा- उन्नीस सौ संत्तालिस में भारत का बंटवारा होने के बाद मेवात रीजन में भी सांप्रदायिक दंगे हुए। उस वक्त अलवर और भरतपुर स्टेट में लगभग 2 लाख मेव रहते थे। भरतपुर में इस दौरान 30 हजार मेव मारे गए। यह आधिकारिक आंकड़ा था। वहीं अलवर में मारे गए और विस्थापितों की संख्या का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
इस दौरान जो लोग हिंसा से बच गए वे नूंह, रेवाड़ी और सोहना के वेटिंग कैंपों में पहुंचे जो उस वक्त पंजाब में था। वेटिंग कैंप में ये लोग तब तक रहते थे, जब तक उन्हें पाकिस्तान भेज नहीं दिया जाता था। इसी दौरान महात्मा गांधी ने मेवात का दौरा किया और उन्हें हिंदूस्तान में रहने के लिए कहा। उन्होंने गांधी जी की बात मान ली। गांधी जी की हत्या के बाद बिनोदा भावे ने मेव को भारत में ही रहने के लिए मना लिया था। फिलहाल 20 लाख मेव मुख्य रूप से हरियाणा के मेवात जिले, अब नूंह और राजस्थान के निकटवर्ती अलवर और भरतपुर में फैले हुए हैं।
इसप्रकार देखा जाएं तो मेव सच्चे हिंदूस्तानी है, जिन्होंने न केवल जाटीस्तान का विरोध किया बल्कि बंटवारे के बाद भी भारत में रहने को ही प्राथमिकता दी। वे आज भी भगवान श्रीकृष्ण को मानते हैं और हिंदू तीज—त्यौहार को मनाते हैं।