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गुजरात चुनाव में गायब रहा गुजरात मॉडल

कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया,
गुजरात विधानसभा के चुनाव के प्रथम चरण का मतदान हो चुका है और दूसरे चरण के मतदान के बाद 18 दिसंबर को चुनाव परिणाम घोषित हो जाएंगे। अभी तक के आंकलन के मुताबिक पूर्व की तरह भाजपा के पक्ष में एकतरफा लहर न होकर भाजपा व कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। बराबर का मुकाबला का आधार इस कारण बन गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महीनों से अपने गृहराज्य की विधानसभा मेें जीत के लिए दिनरात पसीना बहा रहे है, वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी अपनी पप्पूवादी छवि से बाहर निकलकर विशाल चुनावी सभाओं में पूर्व के मुकाबले ज्यादा विश्वास के साथ मोदी सरकार की बखिंया उधेड़ रहे हैं। लगता है कि हिमाचल विधानसभा चुनाव के बाद चुनाव करवाने का दाव भी भाजपा को ज्यादा चुनावी लाभ पहुंचाने में असफल लग रहा है, क्योंकि इस चुनाव में गुजरात का विकास मॉडल कहीं चर्चा में नहीं है जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
गुजरात का विकास मॉडल का प्रभाव
चार वर्ष पूर्व विगत लोकसभा चुनावों में मोदी जी और दूसरे भाजपा नेताओं ने दो दशक के गुजरात में किए गए विकास कार्यों को केंद्र में रखकर जबदस्त धुआंधार चुनाव अभियान चलाया था। इसके साथ ही कालाधन की वापसी, भ्रष्टाचार का खात्मा, हर वर्ष दो करोड़ रोजगार तथा आतंकवाद का खात्मा जैसे नारे भी उछाले गए थे। आश्चर्य की बात है कि उपरोक्त सभी मुद्दे मोदी जी और भाजपा के 13 मुख्यमंत्रियों, 50 केंद्रीय मंत्रियों तथा सैंकड़ों सांसदों व विधायकों की जबान से गायब है और केवल आखरी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का हथियार ही बच गया है। जिसका प्रभाव पूर्व के मुकाबले काफी घट गया है। गुजरात का विकास मॉडल के बाबत आम धारणा व्यक्त की जा रही है कि वह विकास पागल हो गया है। असल में काला धन की वापसी का पाखंड, मोदी की 56 इंच छाती की धौंस, नोटबंदी और जीएसटी से स्वास्थ्य, रोजगार, किसानों की आत्महत्याएं और राष्ट्रीय स्तर पर किसान आंदोलनों का उभार जैसे मुद्दों को विपक्ष हमलावर मुद्रा में उठा रहा है और मोदी सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ अभियान गुजराती मतदाताओं और विशेषकर युवााओं को काफी हद तक प्रभावित कर रहा है।
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गुजरात का बेटा-की अपील बना आखरी हथियार
बड़े आश्चर्य की बात है कि अपने जुमले बाजियों और कलाबाजियों का जनता पर नकारात्मक प्रभाव देखकर देश का प्रधानमंत्री जनता से यह कह कर वोट मांग रहा है कि मुझे इस लिए वोट दें, क्योंकि मैं गुजरात का बेटा हूं। आखिर गुजरात की तरह उत्तर प्रदेश में बनारस से चुनाव लड़ते हुए चार वर्ष पूर्व मोदी जी ने कहा था कि मुझे गंगा मैया ने बुलाया है, लेकिन चार वर्ष के मोदी राज में देश से भ्रष्टाचार और कालाधन का सफाया होना तो दूर, बल्कि अरबों रूपया खर्च करने क बावजूद गंगा की गंदगी भी साफ नहीं हुई है।
निम्न स्तरीय चुनाव अभियान
70 वर्ष की आाजादी के बाद पहली बार गुजरात चुनाव में घटिया व निंदनीय शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है। कांग्रेस के नेता मणिशंकर अययर की हल्की भाषा पर खुद राहुल गांधी ने आपत्ति दर्ज करवाई है, लेकिन नरेंद्र मोदी ने राहुल का अध्यक्ष बनने को औरंगजेब का राज कहकर प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को निम्नस्तर तक गिरा दिया है, क्योंकि गुजरात चुनाव में राहुल गांधी व कांग्रेस के उभार से खुद नरेंद्र मोदी भयभीत है। भ्रष्टाचार का खात्मा का नया गुजरात मॉडल अमित शाह के पुत्र जया शाह के रूप में मोदी जी ने प्रस्तुत किया है, जिसकी 50 हजार की कंपनी ने 80 करोड़ रूपए कुछ वर्षो में ही बना लिया है, जिसकी विगत की मोदी जी घोषणाओं को केवल गप्पबाजी के रूप में ले रहे हैं और झूठ व गप्पों का सहारा लेने वाला प्रधानमंत्री अब केवल गप्पू प्रधानमंत्री बन गया है, जिसकी पोल लगातार खुलती जा रही है।
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गुजरात चुनाव का आगामी राजनीति पर प्रभाव
पंजाब चुनाव की जीत के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ गया था और अहमद पटेल की जोड़ जुगाड़ की राजनीति ने गुजरात चुनाव को मुकाबले का बना दिया है। पट्टीदार आंदेालन के नेता हार्दिक पटेल, फना के शर्मनाक दलित उत्पीडऩ के विरोध के प्रतीक जिग्नेश मेवानी तथा ओबीसी का चेहरा अलमेश ठाकोर की मजबूत युवा तिगड़ी ने प्रधानमंत्री की नींद हराम कर दी है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी, शत्रुधन सिन्हा व सुब्रमनयम स्वामी के बागी तेवरों के बाद महाराष्ट्र के सांसद नानाभाफ पोटेला का लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा भविष्य की दिशा की तरफ इशारा कर रहा है। यही कारण है कि राष्ट्रीय राजनीति पर पडऩे वाले नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिए मोदी जी ने भाजपा की जीत के लिए सिरधड़ की बाजी लगा दी है। देखना अब यही है कि मोदी अपनी प्रतिष्ठता व कुर्सी को बचा पाएंगे अथवा प्रस्तान की तरफ अग्रसर हो जाएंगे।
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