आदमपुर,
प्रदेश में ‘डमी स्कूल’ का कल्चर तेजी से पैर पसार चुका है। जिन स्टूडेंट्स को मेडिकल या इंजीनियरिंग की कोचिंग करनी होती है, वे औपचारिक रूप से किसी स्कूल में नामांकन कराते हैं, लेकिन वहां कभी जाते नहीं। उनका पूरा समय कोचिंग इंस्टीट्यूट्स में गुजरता है। अब सीबीएसई ने ऐसे छात्रों पर लगाम कसने का फैसला किया है।
डमी स्कूल को लेकर सीबीएसई ने स्पष्ट किया है कि जो स्टूडेंट्स रेगुलर स्कूल नहीं जाते हैं, वे 2025-26 से बोर्ड एग्जाम में नहीं बैठ पाएंगे। कई शिक्षाविदों ने भी चिंता जताई है कि यह सिस्टम छात्रों को स्कूलिंग से दूर कर रहा है और मानसिक दबाव बढ़ा रहा है।
फिरोज गांधी मैमोरियल महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. कृष्ण नूनियां और प्रो.आत्मप्रकाश कहते हैं कि यह कोचिंग सेंटर और स्कूलों की मिलीभगत का नतीजा है। नामांकन स्कूल में होता है, लेकिन छात्र वहां कभी नहीं जाते। उनकी उपस्थिति कागजों में दर्ज होती है। असल में, वे कोचिंग में पढ़ाई कर रहे होते हैं। ये वो समय होता है जब छात्र नौंवी या दसवीं में होते हैं। ऐसे में लगातार पढ़ाई का दवाब उन्हें मानसिक रुप से कई प्रकार की कमजोरियां देता है।
क्या है डमी स्कूल का असली मुद्दा
ऐसा देखा गया है कि कई कोचिंग संस्थान बच्चों को सातवीं कक्षा से ही नीट या जेईई की तैयारी कराने लगते हैं। इसमें ‘डमी स्कूल’ बड़ा रोल निभाते हैं। वो आम स्कूलों की तरह होते हैं बस यहां ऐसे छात्रों को रेगुलर कक्षाओं में न आने की सहूलियत मिलती है। ऐसे में बच्चा जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट परीक्षा आदि की तैयारी में जुट जाता है, उधर बोर्ड की तैयारी खुद पढ़कर या कोचिंग की मदद से करता है। वहीं एडवोकेट पवन के. बिश्नोई का कहना है कि इस मुद्दे पर दिल्ली हाईकोर्ट भी कह चुकी है कि डमी स्कूलों की तादाद में तेजी से हो रही वृद्धि उन छात्रों के करियर पर बुरा असर डाल रही है जो वास्तव में स्थानीय शिक्षा मानदंड को पूरा करते हैं।
सीबीएसई का बड़ा फैसला, क्या होगा असर?
सीबीएसई के इस नए नियम के बाद हजारों स्टूडेंट्स और कोचिंग सेंटर प्रभावित होंगे। शिक्षा विशेषज्ञ प्रो.छोटे लाल जस्सु का कहना है कि इसका असर दूरगामी होगा। अब स्टूडेंट्स को नियमित स्कूलिंग करनी होगी। इससे उनकी समग्र शिक्षा पर जोर दिया जाएगा, जो केवल कोचिंग पर निर्भर रहने से संभव नहीं था। डा. हरपाल सिंह के मुताबिकबोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए स्कूल में उपस्थिति जरूरी होगी, यह फैसला उन बच्चों को फायदा पहुंचाएगा जो असल में स्कूलिंग से वंचित हो जाते थे। स्कूलिंग शिक्षा की नींव होती है। कोचिंग सेंटरों ने उस नींव को हिलाने का काम किया है। इससे बच्चों में मानसिक अवसाद काफी बढ़ा है।