राजनीति जनसेवा और लोकतंत्र को बनाये और बचाये रखने के लिए है न कि दूसरों को डराने या दबाने के लिए लेकिन हुआ यह कि सन साठ के बाद से राजनीति में दबाने व विरोधी को चित्त करने के लिए बाहुबलियों या पहलवानों को राजनेता चुनावों में साथ रखने लगे। शुरूआत तो शायद सुरक्षाकर्मियों के रूप में हुई जैसे आजकल फिल्मी सितारे भी बाउंसर्ज रखते हैं। फिर उन बाहुबलियों से जो करोड़ों रूपये गलत तरीकों से कमाते थे, चंदे के रूप में लिए जाने लगे। इस तरह बाहुबलियों का दोहरा फायदा। चुनाव जनसभाओं में इनके चेहरे से डराना और मोटा चंदा वसूलना।
इस तरह बाहुबलियों का प्रभाव राजनीति में बढ़ता चला गया। बिहार के पप्पू यादव को कौन नहीं जानता? वह सीधे राजनीति में आया और राजनीति का संतुलन बनाने और संभालने लगा। कभी उसका साथ पाने के लिए राजनेता लालायित रहते थे। उत्तर प्रदेश में कभी राजा भैया का डंका बजा तो पिछले साल डाॅन दूबे की कहानी सब जानते हैं। कैसे पनप जाते हैं ये बाहुबली या डाॅन माफिया? राजनेताओं के सहारे के बिना? नहीं। राजनीति के वट वृक्ष के साथ लिपट कर ही ये विष बेलें फलती फूलती हैं। जब जब चुनाव आते हैं तब तब पहलवानों की मांग राजनीति में बढ़ जाती है। क्यों ? इनका राजनीति से क्या लेना देना? पर सारा भेद खुल चुका है। यदि पहलवानों का ऐसा दुरूपयोग होना है तो पहलवानी का क्या फायदा? तभी तो सुशील कुमार जैसा पहलवान गलत राह पर चल पड़ा।
अब बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने घोषणा की कि हमारी पार्टी में बाहुबलियों और डाॅन माफियाओं के लिए कोई जगह नहीं और कोई टिकट भी नहीं दी जायेगी। अच्छी बात है और बढ़िया पहल पर यह तो मान ही लिया कि पहले बाहुबली मुख्तार अंसारी को टिकट दी और वे विधायक भी चुने गये अपने बाहुबली होने के चलते। अब क्या पश्चाताप करने जा रही हैं? दूसरी ओर राजनीति का कमाल देखिए कि कोई दूसरी पार्टी खुली ऑफर लेकर आ गयी कि हम अंसारी को टिकट देंगे और वह भी उनकी मनचाही सीट से। लो कर ल्यो बात,,,, बहन जी घाटे में रहेंगी या फायदे में ,,,,? पर टिकट की कमी कहां बाहुबलियों को? टिकट आपके द्वार। जहां से चाहो, वहीं से आ जाओ मैदान में और इस पार्टी ने आरोप लगाया बहन जी पर कि जब तक फायदा मिला मुख्तार अंसारी से तब तक उसे पार्टी में रखा और जब उससे कोई उम्मीद न रही तो दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर कर दिया।
इसके बावजूद सवाल यह उठता है कि राजनीति के अंगने में बाहुबलियों का क्या काम है?
—कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
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