टोहाना(नवल सिंह)
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वो कागज बीनने और कूड़े के ढ़ेर में जिंदगी को तलाश रहे थे..लेकिन उसी समय मनकीत कौर ने उनकी बस्ती की तरफ रुख किया तो उन्हें जिंदगी के मकसद का पता चला..हम बात कर रहे है शहर की स्लम बस्ती में रहने वाले बच्चों की। इन बच्चों ने स्कूल देखे थे, लेकिन केवल बाहर से। अक्षर ज्ञान इनके लिए महज कुछ आकृति थी। ऐसे में पेशे से शिक्षिका मनकीत कौर ने इनको पढ़ाने की ठानी। इसके बाद शुरु हुआ स्लम ऐरिया में निरंतर कक्षा लगाने और बच्चों को पढ़ाने का। शिक्षिका मनकीत कौर का कहना है कि स्लम बस्ती के बच्चों को शिक्षित करने में सकून मिलता है। उन्होंने समाज सेवी मलाला से प्रेरित होकर ये रास्ता चुना है।
4 सालों से स्लम बस्तियों में बच्चों को दे रही शिक्षा
मनकीत कौर ऐसे बच्चों की तलाश में रहती हैं जो किसी कारण से शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, वह अपने समय में से कुछ घंटे निकालकर उन्हें शिक्षा देने का काम करती है। मनकीत पिछले चार वर्षों से स्लम बस्तियों में जाकर उन बच्चों को शिक्षित कर रही है।
स्कूल का नाम है कारवां
मनकीत ने बताया कि पहले वह अपने घर के पास ही बच्चों को पढ़ाया करती थी। वह बच्चे जब वहां से चले गए तो उन्होंने चंडीगढ़ रोड पर नहर के पास स्लम बस्ती के बच्चों को इकट्ठा किया अौर शिक्षा देना शुरू कर दिया। वह रोजाना शाम को लगभग दो से तीन घंटे बच्चों को शिक्षा दी जाती है। मनकीत ने अपने स्कूल का नाम भी कारवां रखा हुआ है।
समाज सेवी मलाला से प्रेरित
मनकीत ने बताया कि वह पहले एक निजी कंपनी में काम करती थी लेकिन उसने नौकरी छोड़कर इस काम को अपना लिया है जो उसे अच्छा लगता है। समाज सेवी मलाला से प्रेरित होकर उन्होंने ये रास्ता चुना अौर उसी पर पिछले 4 सालों से चल रही हैं एवं आगे भी चलती रहेगी। उनको बच्चों को शिक्षा देने से अौर उनके साथ समय बिताने से सकून मिलता है।
बच्चों को पढ़ता देख परिजनों को हो रही खुशी
शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चे की मां दीपा देवी ने बताया कि उसका परिवार गरीब है अौर वे बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च नहीं उठा सकते जिसके कारण उनके बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह मैडम बच्चों को यही पढ़ाने आती है। उन्हें बहुत अच्छा लगता है कि उनके बच्चे पढ़ रहे हैं।