धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—80

एक सज्जन मेरे पास आया और कहने लगा,महाराजजी। आपका मन हमेशा संकीर्तन,भजन, कथा सत्संग में कैसे लगा रहता है? हमारा मन तो 5-10 मिनट से अधिक लगता ही नहीं। कृपया कोई उपाय बताइए। मैंने उसकी ओर देखा,मुझे लगा जिज्ञासु है,बताना चाहिए,पास बुलाया,हाथ की रेखाएँ देखीं और सहज भाव से कह दिया, भैया। सात दिनों में मृत्यु का योग है, जितनी हो सके मृत्यु की तैयारी करो,परमात्मा का नाम जाप करो। और सातवें दिन मेरे पास आ जाना।

युवक ऐसा सुनकर डर गया और घर जाकर न कुछ खाया,न कुछ पिया,घर में पूजा स्थान बना रखा था वहीं भक्ति में लीन हो गया। उसे तो मौत के सिवाय कुछ सूझता ही नहीं था। न व्यापार याद आता है, न बच्चे और न ही पत्नी। इस प्रकार छ: दिन बीते, सातवें दिन सुबह सुबह ही मेरे पास आ गया,प्रणाम किया,मैंने पूछा,भक्ति में मन लगा या नहीं? कहने लगा महाराजजी, जब से आपके पास से गया हूँ तब से लेकर अब तक मेरा मन भक्ति ही कर रहा है। क्यों?

क्योंकि मृत्यु के भय से छुटकारा पाने का भक्ति से सिवाय कोई मार्ग नहीं है। मुझे हँसी आ गई और मैंने उससे कहा,भैया जैसे तुम्हें सात दिन में भक्ति के सिवाय कुछ भी अच्छा नहीं लगा,इसी प्रकार मुझे हर क्षण सिर पर काल मँडराता हुआ नजर आता है, तो मेरा मन हर समय उस परब्रह्म परमात्मा के चरणों में लगा रहता है। युवक को अपने प्रश्र का उत्तर सहज ही मिल गया।

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