अहीरवाल का इतिहास वीरता की गौरव गाथाओं से भरा पड़ा है। जंग-ए-आजादी में भी यहां के वीरों का अहम योगदान रहा था। यहां के राजा राव तुलाराम सन् 1857 की क्रांति के महान नायक थे।
मां भारती को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए शुरू हुई 1857 की क्रांति बेशक विफल हो गई थी, लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि इसी क्रांति ने भारतीयों में आजादी पाने का ऐसा जज्बा पैदा किया था, जिससे अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की इस पहली जंग में एक ओर थे मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर, तात्या टोपे, महारानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, नाना साहब पेशवा व नाना फड़नवीस जैसे महान जांबाज थे तो दूसरी ओर थे रेवाड़ी स्थित रामपुरा रियासत के राजा राव तुलाराम।
14 वर्ष की उम्र में संभाला था राजपाट
अहीरवाल की वीरभूमि पर अंग्रेजों की ताकतवर सेना से मुकाबला करने वाले राजा राव तुलाराम को अदम्य साहस के कारण ही सन् 1857 की क्रांति का महानायक कहा जाता है। राव तुलाराम को पिता के निधन के कारण मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही राजकाज संभालना पड़ गया था। उन्होंने अपनी सूझबूझ से अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ अंतिम सांस तक संघर्ष किया।
यूं तो 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुए संघर्ष को ही आजादी की पहली लड़ाई माना जाता रहा है, लेकिन इस संघर्ष में बहादुरशाह जफर, तात्या टोपे तथा नाना फड़नवीस जैसे योद्धाओं के साथ यहां के राव राजा तुलाराम व राव गोपालदेव आदि भी शामिल थे। राव तुलाराम की वीरता को हरियाणा सरकार भी सम्मान देती आ रही है। हरियाणा में कई वर्षो से राव तुलाराम के शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में 23 सितंबर को वीर एवं शहीदी दिवस पर अवकाश घोषित किया जा रहा है। इस दिन प्रदेश के तमाम वीर शहीदों का भावपूर्ण स्मरण किया जाता है।
1825 में हुआ था जन्म
राव तुलाराम का जन्म 9 सितंबर 1825 को रेवाड़ी के राज परिवार में हुआ था। राव तुलाराम ने जिस समय होश संभाला, तब मातृभूमि पर अंग्रेजों का अधिकार था। बचपन में ही पिता पूर्ण सिंह का साया सिर से उठने के कारण बालक तुलाराम का लालन-पालन उनकी माता ज्ञानकंवर की देख रेख में हुआ था। पिता का साया सिर से उठने पर राव तुलाराम को मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही राजगद्दी सौंपी गई थी। इस बीच जब मई 1857 की क्रांति की लहर अहीरवाल क्षेत्र में पहुंची तब राव राजा ने भी क्रांति का बिगुल बजा दिया। राव तुलाराम ने इस इलाके से अंग्रेजी सेना के खात्मे का ऐलान कर दिया। क्रांतिकारी नेताओं ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा कर बहादुरशाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। अंग्रेज गुड़गांव व आसपास का इलाका छोड़ कर भाग गए तथा इस पूरे इलाके पर राव तुलाराम का शासन कायम हो गया। गुस्साये अंग्रेजों ने संगठित होकर राव तुलाराम को घेरने की कोशिश की। इस दौरान ही 16 नवंबर 1857 को नारनौल के समीप नसीबपुर के मैदान में अंग्रेजों व भारतीय योद्धाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ।
काबुल पहुंचे थे राव
इस लड़ाई में अंग्रेजी सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा। राव तुलाराम अंग्रेजी सेना को चकमा देकर भेष बदलकर अपने विश्वसनीय साथियों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगने के लिए काबुल पहुंच गए, परतु भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। काबुल पहुचकर अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चाबंदी मजबूत करने से पहले ही उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। 23 सितंबर 1863 को आजादी का यह महानायक सदा के लिए सो गया, परंतु आजादी की जो चिंगारी उन्होने सुलगाई थी, वही भविष्य में ज्वाला बनकर देश को आजाद कराने का कारण बनी। काबुल से राव तुलाराम की अस्थियां लाने के लिए कुछ वर्ष पूर्व प्रयास भी शुरू हुए थे, लेकिन यह प्रयास अन्यान्य कारणों से सिरे नहीं चढ़ पाये।