नई दिल्ली,
दुनिया के ज्यादातर देशों में पिछले कुछ सालों में लोगों की औसत ऊंचाई बढ़ी है, लेकिन भारत में इसके उलट देखने को मिल रहा है। देश के लोगों का कद घटता जा रहा है। 2005-06 से 2015-16 के बीच के दशक के दौरान देश में वयस्क महिलाओं और पुरुषों की एवरेज हाइट घटी है। खास बात यह है कि आदिवासी महिलाओं के साथ-साथ गरीब तबके की महिलाओं की औसत ऊंचाई में ज्यादा गिरावट आई है।
भारतीयों के बौने होने की वजह भी आंकड़ों में ही छिपी हुई है। इसी अवधि के दौरान अमीर तबके की महिलाओं की औसत ऊंचाई बढ़ी है। आंकड़ों को देखने से साफ हो रहा है कि औसत ऊंचाई का संबंध न्यूट्रिशन और दूसरे सामाजिक व पर्यावरणीय फैक्टर्स से है। यह खुलासा हुआ है ओपन एक्सेस साइंस जर्नल PLOS One की एक स्टडी से। प्लोस वन ने 1998-99, 2005-06 और 2015-16 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आधार पर वयस्क महिलाओं और पुरुषों की औसत ऊंचाई की तुलना करते हुए स्टडी की है।
उदाहरण के तौर पर 2005-06 से 2015-16 के दौरान 15 से 25 एज ग्रुप की महिलाओं की औसत लंबाई को ही देख लें। इस दौरान एसटी महिलाओं की औसत लंबाई सबसे ज्यादा घटी है। उनकी एवरेज हाइट में 0.42 सेंटीमीटर की गिरावट आई है। वहीं 26 से 50 एज ग्रुप में भी तकरीबन ऐसा ही ट्रेंड है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन ऐंड कम्यूनिटी हेल्थ की स्टडी बताती है कि 1998-99 और 2005-06 के दौरान हर जाति, धर्म और राज्य की हर एज ग्रुप की महिलाओं की औसत ऊंचाई बढ़ी थी। मेघालय इसका अपवाद था जहां उस अवधि में औसत ऊंचाई में गिरावट देखी गई थी।
2015-16 से पहले वाले दशक में 26-50 एज ग्रुप की महिलाओं की औसत ऊंचाई में मामूली बढ़ोतरी हुई थी। हालांकि, एसटी और सबसे गरीब तबके की महिलाओं की लंबाई घटी थी।
स्टडी में कहा गया है, ‘रिसर्चरों ने NFHS-3 (2005-06) के डेटा का विश्लेषण किया। पता चला कि एसटी समुदाय की 5 साल की बच्ची की औसत लंबाई उसी उम्र की सामान्य वर्ग की बच्ची से 2 सेंटीमीटर छोटी रही। एसटी और जनरल कास्ट के बच्चों की लंबाई में अंतर के लिए सामाजिक-आर्थिक स्थिति में बड़ा अंतर जिम्मेदार है।’ साफ है कि सामाजिक आर्थिक खाई बढ़ने के साथ-साथ लोगों की लंबाई में भी एक तरह की खाई बढ़ रही है।
बात अगर पुरुषों की करें तो सबसे ज्यादा लंबाई आदिवासी पुरुषों की घटी है। हालांकि, 2005-06 और 2015-16 के बीच जनरल कैटिगरी और यहां तक कि अमीर तबके के लोगों की भी औसत लंबाई घटी है।
न्यूट्रिशन और पब्लिक हेल्थ पर काम करने वाले संगठन पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क की डॉक्टर वंदना प्रसाद ने बताया कि ये आंकड़े न सिर्फ फुड इनसेक्युरिटी बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास की विषमता को दिखाते हैं।