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VIDEO काकोरी विद्रोह : हिंदुस्तान स्वतंत्रता का नया अध्याय

9 अगस्त, 1925 को घटे काकोरी विद्रोह को हमेशा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र प्रसाद लाहिड़ी और अन्य कई क्रांतिकारियों के लिए जाना जाता है। हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़े क्रांतिकारियों ने इस विद्रोह को अंजाम दिया था।


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ये घटना हिंदुस्तानियों की खून—पसीने की कमाई को अंग्रेजी सैनिकों से वापिस छीनने की है। 9 अगस्त, 1925 को काकोरी से ट्रेन चली थी। इस ट्रेन में भारत की जनता से वसूला लगया लगान था। आंदोलनकारियों ने इस ट्रेन से पूरा खजाना वापिस लेने का प्लान बनाया था। जब ट्रेन लखनऊ से करीब 8 मील की दूरी पर थी, तब उसमें बैठे तीन क्रांतिकारियों ने गाड़ी की चेन खींचकर उसे रोक दिया और हिंदुस्तानियों से वसूला गया कठोर लगान फिरं​गियों से छीन लिया।

स्वतंत्रता सेनानियों ने इसके लिए जर्मन माउज़र का इस्तेमाल किया और अंग्रेजों के खजाने के लिए जा रहे चार हज़ार रुपये वापिस छीन लिए। इस विद्रोह के एक महीने के अंदर करीब 40 लोगों की गिरफ्तारी हुई। इनमें स्वर्ण सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, दुर्गा भगवती चंद्र वोहरा, रोशन सिंह, सचींद्र बख्शी, विष्णु शरण डबलिश, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंदी लाल, शचींद्रनाथ सान्याल एवं मन्मथनाथ गुप्ता शामिल थे। इनमें से 29 लोगों के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। 29 लोगों के खिलाफ स्पेशल मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा चला।

अप्रैल, 1927 को आखिरी फैसला सुनाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। जिन लोगों पर मुकदमा चलाया गया उनमें से कुछ को 14 साल तक की सजा दी गई। दो लोग सरकारी गवाह बन गए, इसलिए उनको माफ कर दिया गया। दो और क्रांतिकारियों को छोड़ दिया गया था। चंद्रशेखर आजाद किसी तरह फरार होने में कामयाब हो गए थे।

जिन चार क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, उनको बचाने का काफी प्रयास किया गया। मदन मोहन मालवीय ने उनके बचाव के लिए अभियान शुरू किया लेकिन ब्रिटिश सरकार का उन चारों को फांसी देने का फैसला नहीं बदला।

राजेंद्र लाहिड़ी को 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में, 19 दिसंबर को बिस्मिल को गोरखपुर जिला जेल, अशफाक उल्लाह खान को फैजाबाद जिला जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद के मलाका जेल में फांसी दी गई। जेल में बंद रहते हुए बिस्मिल ने मेरा रंग दे बसंती चोला गीत लिखा।

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