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19 जनवरी महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि : वीर प्रताप की मौत पर दुश्मन की आंखों से भी छलका पानी

भारत के इतिहास में ऐसे कई राजा-महाराजा हुए जिनका नाम आज गर्व से लिया जाता है। ऐसे राजा-महाराजाओं को भारत माता का पुत्र कहकर सम्मानित किया गया है, इन्हीं वीर पुत्रों में से एक थे मेवाड़ के महाराणा प्रताप। बचपन से ही अपनी बहादुरी के लिए जाने गए महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के अंतिम चरण तक भी ऐसे-ऐसे कार्य किए जिन्हें आज भी दुनिया याद करती है। 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हुआ गया था। जिनकी वीरता, पराक्रम, त्याग, तपस्या और बलिदान की अमर कहानी आज भी हम सबके दिलों में जिंदा है। जिनकी महानता के दुश्मन भी मुरीद हो गये थे।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ई. में राजस्थान के कुंभलगढ़ क्षेत्र में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह एवं माता राणी जीवत कंवर ने बचपन से ही उन्हें ऐसी सीख प्रदान की थी जिसे पाकर वे प्रतापी बने थे। कहते हैं कि महाराणा प्रताप को बचपन में कीका नाम से पुकारा जाता था। बचपन से ही वे दिमागी रूप से काफी कुशल थे और चीज़ों को जल्द से जल्द समझ लेते थे। यही कारण है कि महाराणा प्रताप के बचपन से भी जुड़ी कई कहानियां ऐतिहासिक पन्नों में दर्ज हैं। बड़े होकर महाराणा प्रताप ने अपने राज्य की बागडोर संभाली, उनका राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ था।

हल्दीघाटी का युद्ध
यह तो महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़े काफी छोटे-छोटे अंश हैं, यदि उन्हें किसी बात से सबसे अधिक याद किया जाता है तो वह है हल्दीघाटी का युद्ध। जब महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा के रूप में सामने आए तब भारत पर मुगलों का कहर काफी बढ़ चुका था। मुगल बड़ी तादाद में सामने आ रहे थे और धीरे-धीरे करके भारत के कई राज्यों को अपने नाम कर चुके थे। यह वह समय था जब मुगलों से टक्कर लेना भी एक स्वप्न जैसा था, लेकिन प्रतापी राजा महाराणा प्रताप को डर की एक भी हवा छू भी ना सकी। उन्हें मुगल बादशाह अकबर का सत्ता के सिंहासन पर होना गंवारा ना था। और समय आ गया था जब मेवाड़ राज्य एवं मुगल फौज के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ, हल्दीघाटी का युद्ध।
हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। इतिहासकारों का मानना है कि यह कोई आम युद्ध नहीं था, अकबर और राणा के बीच लड़ा गया यह युद्ध महाभारत के युद्ध की तरह विनाशकारी था। ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। दोनों ओर से बराबरी की टक्कर के चलते युद्ध का कोई परिणाम हासिल ना हो सका था।

इतने भारी हथियार
ऐतिहासिक तथ्यों की मानें तो ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनका भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। किंतु इतना वजन उठाने के बाद भी राणा काफी आसानी से शत्रुओं का सामना कर लेते थे, मानों उन्होंने आम कवच और भाले उठा रखे हों। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास तकरीबन 85000 सैनिक, लेकिन इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे।

अकबर रह गया हैरान
राणा के इस साहस को देखकर एक पल एक लिए अकबर भी दंग रह गया था। वह समझ नहीं पा रहा था कि कैसे युद्ध को जीता जाए। उसकी सारी रणनीतियां बेकार जा रही थीं, क्योंकि महाराणा प्रताप की फौज की ताकत के सामने अकबर की इतनी बड़ी फौज भी कुछ नहीं कर पा रही थी। अंतत: अकबर ने वह किया जिसका किसी को अंदाज़ा नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि जब युद्ध का कोई परिणाम नहीं मिल पाया तब अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शान्ति दूतों को भेजा था, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके। लेकिन महाराणा प्रताप ने यह कहते हुए हर बार उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया कि राजपूत योद्धा जीत से कम कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।

एक बेहतरीन शासक
महाराणा प्रताप को आज ना केवल एक अच्छे योद्धा वरन् एक अच्छे शासक के रूप में भी याद किया जाता है। कहते हैं कि जब से उन्होंने मेवाड़ को मुगलों की गुलामी से आजाद कराया था, तब से लेकर उनके अंतिम समय तक कभी भी कोई मुगल उनके राज्य के किसी भी कार्य में दखल नहीं दे सका।

महाराणा प्रताप की मृत्यु
उनका राज्य केवल उनके कहने पर चलता था, कोई भी बाहरी उनके राज्य में उनकी मर्जी के बिना प्रवेश भी नहीं कर सकता था। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के अंतिम चरणों में अपने राज्य की काफी सेवा की। उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड मे हुई थी।

अकबर भी हुआ दुखी
कहा जाता है कि उनकी मृत्यु से उनके चाहने वालों को तो काफी दुख पहुंचा ही था, लेकिन उनके सबसे बड़े दुश्मन कहे जाने वाले मुगल बादशाह अकबर को भी राणा की मृत्यु पर काफी चोट पहुंची। अकबर की नजर में महाराणा प्रताप एक शूरवीर योद्धा और एक सच्चे देशभक्त थे, जो अपने लोगों के लिए अपनी जान भी न्यौछावर कर सकने की क्षमता रखते थे। ऐसे योद्धा युगों के बाद जन्म लेते हैं।

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