धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 451

राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत, और शत्रुघ्न को अध्ययन हेतु महर्षि वशिष्ठ के आश्रम भेजा था। उनके लिए राजमहल में शिक्षण की व्यवस्था हो सकती थी, किंतु आश्रम इसलिए भेजा गया ताकि एक अनुशासन के भीतर रहकर वे शिक्षा प्राप्त करें और शिक्षा के वास्तविक अर्थ को आत्मसात करें।

चारों राजपुत्रों ने आश्रम में रहकर सामान्य शिष्यों की तरह परिश्रम किया और पूर्णतः अनुशासन में रहकर शिक्षा ग्रहण की। जब वे शिक्षा पूर्ण कर अयोध्या लौटे तब एक दिन ऋषि विश्वामित्र ने दशरथ के पास आकर अपनी समस्या बताते हुए कहा- वन में स्थापित हमारे आश्रमों को राक्षस नष्ट कर रहे हैं। वे हमें यज्ञ नहीं करने देते और हमारे ऋषि मुनियों को परेशान करते हैं। हमारी संस्कृति खतरे में है। कृपा कर यज्ञादि के रक्षार्थ आप अपने दो पुत्र राम और लक्ष्मण हमें प्रदान करें।

दशरथ तैयार नहीं हुए, क्योंकि उनका विचार था कि राजकुमारों ने अपनी शिक्षा आश्रम में रहकर प्राप्त कर ली है और अब उन्हें राजमहल में रहकर आगे का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तब गुरु वशिष्ठ ने उन्हें समझाया- राजन! इन्हें विश्वामित्र के साथ भेज दीजिए, क्योंकि व्यावहारिक ज्ञान उन्हें उनसे ही प्राप्त होगा। दशरथ ने राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया और राक्षसों का दमन कर उन्होंने अपनी शिक्षा की व्यावहारिकता ग्रहण की।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, किताबी ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान तक पहुंचकर ही पूर्णता पाता है। इसलिए अपनी संतानों को सैद्धांतिक शिक्षा के साथ व्यावहारिक शिक्षा भी दें।

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