आदमपुर,
राजा परीक्षित और तक्षक की कथा से हमें भाग्य को स्वीकारने, कर्तव्य पालन, और क्रोध पर नियंत्रण रखने की प्रेरणा मिलती है। परीक्षित ने श्राप आने पर भी धैर्य से मृत्यु का सामना किया। यह बात प्रणामी मिशन के प्रमुख संत स्वामी सदानंद जी महाराज ने वरुण गर्ग द्वारा लाला लखीराम धर्मशाला में आयोजित श्रीमद्भागवत—श्रीकृष्ण कथा के दौरान श्रद्धालुओं को प्रवचन करते हुए कही।
उन्होंने कहा ऋषि श्रृंगी के शाप के कारण राजा परीक्षित को सात दिन में तक्षक नाग द्वारा डसे जाने का श्राप मिलता है। परीक्षित ने अपने भाग्य को स्वीकार किया और सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से मृत्यु को प्राप्त हुए। राजा परीक्षित की कथा हमें सिखाती है कि हमें भाग्य को स्वीकारना चाहिए और निराशा में नहीं पड़ना चाहिए। जब मृत्यु पास हो तो भयभीत होने के स्थान पर प्रभु के नाम का सिमरन करना चाहिए। अंत समय में किया गया प्रभु का नाम सिमरन ही हमें भवसागर से पार उतारने का काम करता है।
परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए नागों के विनाश का यज्ञ किया। तक्षक नाग यज्ञ से बचने के लिए देवराज इंद्र के पास गया और बाद में आस्तिक ऋषि के समझाने पर जनमेजय ने यज्ञ रोक दिया। जनमेजय ने अपने क्रोध पर नियंत्रण रखा और यज्ञ को रोककर नागों के हित के लिए कार्य किया। आस्तिक ऋषि के समझाने पर जनमेजय ने नागों को क्षमा किया और यज्ञ को रोक दिया, जिससे नागों का विनाश टल गया। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी क्रोध में आकर विनाश लीला करना करना काफी असान है लेकिन सजृन करना बेहद मुश्किल है। सदा सजृनता की तरफ अपना ध्यान लगाना चाहिए।
राजा जनमेजय की कथा से शिक्षा मिलती है कि सर्वहित में अपने शत्रु को भी क्षमा करके अपने लक्ष्य को बदल लेना चाहिए। इस दौरान श्रीतारतम वाणी और बीतक कथा का सार भी उन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में सुनाते हुए प्रयागराज के पवित्र जल का श्रद्धालुओं को पान करवाया। इससे पहले प्रख्यात विद्वान रवि शास्त्री ने श्रीमद्भागत कथा का सार सुनाते हुए इसके महत्व के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। वहीं आशुकवि विनय तिवारी ने भजनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को सत्संग में आने का महत्व समझाया।