धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 361

एक बार की बात है, ऋषिकेश में गंगा के किनारे एक संत रहा करता था।

वह संत बहुत ही दयालु स्वभाव का था और नित्य भगवान की पूजा अर्चना करता था। उस संत के बहुत सारे शिष्य थे, जो की उसके सानिध्य में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह संत जन्म से अंधा था, लेकिन उसका एक नियम था। वह प्रतिदिन दिन ढल जाने के बाद गगन चुंबी पहाड़ों में सैर के लिए जाया करता था। जब भी वह भ्रमण के लिए जाता तो हरि का कीर्तन करते हुए जाता और इसी प्रकार वहां से रोज़ लौट आता।

अपने गुरु को प्रतिदिन ऐसा करता देख उसके शिष्य असमंजस्य में पड़ जाते थे की वे अंधे होने के बावजूद भी ऐसा कैसे कर लेते है। एक दिन अपनी जिज्ञासा के चलते एक शिष्य ने उनसे पूछा – ‘ बाबा! आप हर रोज इतने ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर सैर के लिए जाते हैं, वहां तो बहुत गहरी खाइयां होती हैं और आप तो देख भी नहीं सकते।

क्या आपको कभी डर नहीं लगता ?

कहीं पांव डगमगा गये तो ?

या कोई जंगली जानवर आ जाए तो?

क्या आपको इस सब से चीज़ों से जरा भी भय नहीं लगता?’ वह संत पहले थोड़ा मुस्कराएं और फिर वहां से चले गए।

अगले दिन सुबह उन्होंने अपने शिष्य को भ्रमण के लिए साथ चलने को कहा। पहाड़ों पर चढ़ते समय बाबा ने शिष्य से कहा की यदि कोई गहरी खाई तो उन्हे बता दें। ऐसे ही वह दोनों चलते रहे और जैसे ही गहरी खाई आयी शिष्य ने बाबा को इस बारे में बताया और कहा-‘ बाबा गहरी खाई आ गयी है।’

यह सुनकर बाबा ने शिष्य से कहा – अब तुम मुझे इस खाई में धक्का दे दो।

बाबा की यह बात सुनकर शिष्य विस्मित होकर चारों ओर देखने लगा।

उसने कहा – मैं, भला आपको कैसे धक्का दे सकता हूं। ऐसा कुछ करने की तो में सोच भी नहीं सकता।

शिष्य ने आगे कहा- आप मेरे गुरु है, मैं तो अपने किसी दुश्मन को भी इतनी गहरी खाई में नहीं धकेल सकता।

बाबा ने कहा- मैं खुद तुमसे इस खाई में धक्का देने को कह रहा हूं, यह मेरा आदेश है और यदि तुम इस आज्ञा का पालन नहीं करोगे तो तुम्हें नर्क की प्राप्ति होगी।

‘मुझे नर्क भोगना स्वीकार है बाबा, किन्तु मैं ऐसा बिलकुल नहीं कर सकता, शिष्य ने कहा।

तब संत ने शिष्य से कहा – अब तुम्हें समझ आया, जब तुम एक सामान्य मनुष्य होकर मुझे गहरी खाई में नहीं धकेल सकते तो भला मेरा परमात्मा मुझे खाई में कैसे गिरने दे सकता है।

भगवान हमेशा गिरे हुए को उबारते है और कभी किसी के भी साथ गलत नहीं होने देते है। यह सुनकर शिष्य ने अपने गुरु को प्रणाम किया और इस सीख के लिए धन्यवाद दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें कभी भी ईश्वर से अपने विश्वास को कम नहीं करना चाहिए, यदि आपके साथ अभी कुछ बुरा हो रहा है, तो हो सकता है यह आने वाले समय में कुछ बहुत अच्छा होने का संकेत हो। इसलिए भगवान पर हमेशा विश्वास रखें, उन्होंने आपके लिए ज़रूर कुछ अच्छा ही सोचा होगा।

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