पुराने समय में हाथियों का एक राजा था – गजेंद्र। वह अपने परिवार, मित्रों और सेवकों के साथ एक शांत सरोवर में स्नान करने गया। जल में उतरते ही गजेंद्र आनंद में डूब गया और लापरवाह हो गया। लापरवाही में वह सरोवर में कुछ आगे निकल गया।
उसी सरोवर में एक शक्तिशाली मगरमच्छ भी रहता था। उसने गजेंद्र का पैर पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। गजेंद्र ने पूरी ताकत से संघर्ष किया और अपने साथियों से गुहार लगाई– “कोई मुझे खींच रहा है, मुझे बाहर निकालो वरना मैं डूब जाऊँगा!”
शुरू में सभी मित्रों ने उसकी मदद की, लेकिन जब देखा कि मगरमच्छ बहुत बलवान है तो एक-एक करके सभी साथी उसका साथ छोड़ गए। गजेंद्र ने पीछे मुड़कर देखा – सब किनारे पर खड़े थे, कोई पास नहीं था। तब उसने समझा— “जो मेरे साथ आए थे, वे साथ नहीं देंगे। जन्म के समय जो साथ आए हैं — आत्मा और परमात्मा — वही अंत तक साथ रहेंगे।”
उसने भगवान विष्णु को पुकारा। भगवान अपने भक्त की आवाज सुनकर तुरंत रक्षा के लिए पहुंच गए। विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उस मगरमच्छ का वध किया और गजेंद्र को जीवनदान दिया।
बाहर आकर गजेंद्र ने कहा:”सही समय पर मुझे ये ज्ञान हो गया कि सिर्फ परमात्मा ही सच्चे सहायक हैं।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, इस कथा से 5 सीख मिलती है।
सुख के समय में लापरवाही न करें – गजेंद्र जब जल में गया, तो वह इतना मग्न हो गया कि सजगता खो बैठा। यही स्थिति हमारे साथ भी होती है जब हम खुशियों में आत्म-नियंत्रण खो देते हैं और लापरवाह हो जाते हैं। जीवन में चाहे कितना भी आनंद क्यों न हो, अपनी मर्यादा और संतुलन जरूरी है।
हर कोई हर वक्त साथ नहीं दे सकता – जब गजेंद्र संकट में था, तो उसके अपने भी उसे छोड़ गए। यह कठोर सत्य है कि मित्र, परिवार और संबंध सीमित परिस्थितियों में ही साथ देते हैं। हमें ये समझना होगा कि दूसरों के भरोसे कोई काम नहीं करना चाहिए, आत्मनिर्भर बनना जरूरी है।
आंतरिक शक्ति सबसे बड़ा बल है – गजेंद्र को जब किसी ने नहीं बचाया, तब उसने अपने भीतर देखा — आत्मा और परमात्मा की याद आई। जब बाहर कोई राह न दिखे तो भीतर का प्रकाश ही रास्ता दिखाता है। भगवान पर भरोसा रखेंगे तो मुश्किलें दूर हो जाएंगी।
विश्वास और समर्पण चमत्कार करते हैं – सच्चे मन से जब गजेंद्र ने भगवान को पुकारा, तब भगवान स्वयं उपस्थित हुए। श्रद्धा और विश्वास केवल धार्मिक शब्द नहीं, वे जीवन की दिशा बदल सकते हैं।
नेतृत्व का अर्थ है अंत तक डटे रहना – गजेंद्र ने हार नहीं मानी, वह तब तक प्रयास करता रहा जब तक समाधान न मिला। सफल वही होता है जो संकट में भी साहस और विवेक से काम लेता है।