धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—267

पुराने समय में एक व्यापारी नदी किनारे एक नगर में रहता था। एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए उसे नाव का उपयोग करना पड़ता था, लेकिन उसे तैरना नहीं आता था। एक दिन वह नदी के रास्ते दूसरे नगर जा रहा था। नदी के बीच में उसने देखा कि उसकी नाव में पानी भरा रहा है। नाव में छेद हो गया था। वह डर गया। अब सेठ भगवान को याद करने लगा। तभी उसे एक मछुआरा दिखाई दिया।

सेठ ने मछुआरे को आवाज लगाई और कहा कि मेरी नाव डूब रही है, मुझे तैरना नहीं आता, मुझे बचा लो, मैं तुम्हें मेरी पूरी संपत्ति दे दूंगा। मछुआरा अपनी नाव लेकर उसके पास पहुंचा और व्यापारी को बचा लिया।

मछुआरे की नाव में बैठने के बाद सेठ ने राहत की सांस ली। अब वह सोच रहा था। उसने मछुआरे से कहा कि भाई अगर मैं तुम्हें मेरी पूरी संपत्ति दे दूंगा तो मैं अपने जीवन यापन कैसे कर पाउंगा। मैं तुम्हें पूरी तो नहीं, लेकिन आधी संपत्ति दे दूंगा।

कुछ देर बाद व्यापारी फिर बोला, ‘भाई मेरे परिवार में पत्नी और बच्चे भी हैं, मेरी संपत्ति में उनका भी हक है। मैं तुम्हें आधी नहीं, एक चौथाई संपत्ति दे दूंगा। मछुआरा व्यापारी की बात कोई जवाब नहीं दे रहा था।

जब नाव किनारे पर पहुंच गई तो व्यापारी ने सोचा कि मैं अब सुरक्षित हूं। इस मछुआरे ने मेरी जान बचा के कोई बड़ा काम नहीं किया। ये तो इसका फर्ज था। मानवता के नाते इसे मेरी मदद करनी ही थी। व्यापारी ने मछुआरे को थोड़े से पैसे देने चाहे, लेकिन मछुआरे ने ये भी लेने से मना कर दिया। सेठ अपने पैसे लेकर वहां से चला गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, व्यक्ति बुरे हालातों में अच्छे काम करने प्रण लेता है, लेकिन जब हालात उसके पक्ष के हो जाते हैं तो उसके मन में लालच जाग जाता है और वह अपनी बात से ही पलट जाता है।

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