एक प्राचीन आश्रम में एक युवा शिष्य रहता था—नाम था वीर. वह तेज, उत्साही और साहसी था, पर भीतर से थोड़ा अधीर। कोई भी कठिनाई आते ही वह घबरा जाता और कहता— “गुरुदेव, मुझसे नहीं होगा… ये संघर्ष बहुत बड़ा है!”
एक दिन गुरुदेव मुस्कुराए और बोले, “आज मैं तुम्हें एक सीख दूँगा, पर इसे समझने के लिए तुम्हें मेरे साथ जंगल चलना होगा।”
दोनों घने जंगल में पहुँचे। वहाँ एक बड़ी चट्टान के पीछे एक छोटी-सी चींटी अपना घर बनाने में लगी थी। वह बार–बार मिट्टी ले जाती, हवा उड़ा देती। बारिश गिरती, मिट्टी बह जाती। पक्षी आए, घर बिखेर गया। पर चींटी हर बार फिर से शुरू कर देती।
वीर बोला, “गुरुदेव, यह तो बेचारापन है! कितनी बार हार रही है और फिर भी लगी हुई है।”
गुरुदेव बोले,“ध्यान से देखो, यह हार नहीं रही… यह बना रही है!”
कुछ दिनों बाद जब वे फिर उस स्थान पर लौटे, तो देखा—चींटी ने पहाड़ जैसी परेशानियों के बीच एक मजबूत और सुंदर घर बना लिया था। वीर आश्चर्य में था।
गुरुदेव बोले, “देखो वीर… जिसने छोटी-सी दीवार को पार किया है, वह छोटी जीत पाता है।
पर जिसने पहाड़ जैसे संघर्ष को पार किया है, उसकी जीत इतिहास बन जाती है। संघर्ष बड़ा होगा, तो तुम भी बड़े बनोगे। और जब तुम बड़े बनोगे, तब तुम्हारी जीत भी शानदार होगी।”
वीर समझ गया कि कठिनाइयाँ तो सिर्फ ईश्वर का तरीका हैं हमें ऊँचा उठाने का— जो संघर्ष जितना बड़ा सहता है, उसकी जीत उतनी ही चमकदार होती है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कठिनाइयों से मत घबराओ। वे तुम्हें रोकने नहीं, गढ़ने आती हैं। संघर्ष जितना बड़ा… जीत उतनी ही शानदार।








