तिब्बत के धर्मशास्त्र कहते हैं:साल में एक बार जरूर नहाना चाहिए। मगर मूढ़ताएं कुछ अलग -अलग है। मेरे पास कुछ तिब्बती लामा आकर एक बार रूके। सारा घर बदबू से भर गया, क्योंकि वे वर्ष में एक बार नहाने का विश्वास रखते हैं। तिब्बत में बिल्कुल ठीक हैं, वहां धूल भी नहीं जमती, पसीना भी नहीं पैदा होता। भारत में भी आ गये हैं वे , मगर वे अपने लबादे वही पहने हुए है- तिब्बती लबादे। यहां आग जल रही है चारों , तरफ, वे तिब्बती लबादे पहने हुए हैं। उनके भीतर पसीना ही पसीना इकठ्ठा हो रहा है और नहाने का उन्हें खयाल ही नहीं है। मैंने उनसे कहा कि भई या तो तुम रहो इस घर में या मैं रहूं, दोनों साथ नहीं रह सकते। या तो मैं चला।
वे कहने लगे: हम तो आपके ही सत्संग के लिए आये हैं। मैंने कहा: सत्संग यह बहूत मंहगा पड़ रहा है। यह इतनी बदबू में नहीं रह सकता। तुम बहाओ।जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
उन्होंने कहा-नहाओ। लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि साल में एक दफे जरूर नहाना चाहिए, तो हम एक दफे नहाते हैं। मैंने कहा: यहां तुम्हें दिन में दो बार नहाना पड़ेगा। मगर उनको भी अखरता है। ठंडे मुल्कों में, जैसे रूस में या साइबेरियां में शराब पीना जीवन का अनिवार्य अंग है, जैसे पानी पीना। लेकिन तुम अगर वहां जाओगे और अपना सिद्धांत लगाओगे कि शराब मैं नही पी सकता, तो तुम मुश्किल में पड़ोगे।जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
स्वतंत्रता का अर्थ होता है:चैतन्य, बोध समझ। मनुष्य सर्वाधिक स्वतंत्र है, लेकिन मनुष्यों में कुछ जातियों ने ज्यादा स्वतंत्रता अनुभव की है बजाय और जातियों के। जिन जातियों ने ज्यादा स्वतंत्रता अनुभव की है वे विकास के शिखर पर चढ़ गयीं। इस देश ने तो सैंकड़ो वर्ष ऐसे गवांए कि हम समुद्र -यात्रा पर नहीं जा सकते थे, क्योंकि समुद्र-यात्रा का उल्लेख शास्त्रों में नहीं है। समुद्र-यात्रा पर जो गया वह म्लेच्छ हो गया। स्वाभाविक था कि जो समुद्र-यात्रा कर सकते थे, वे हमारे मालिक हो गये। होना ही था। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
मनुष्य सर्वाधिक स्वतंत्र है और मनुष्य और भी स्वंतत्र हो जाता है अगर उसमें समझ हो। अगर वह समझपूर्वक जिये, रूढ़ से न जिये… रूढि़ से जीने वाला मनुष्य ठीक अर्थो में मनुष्य नहीं है उसमें कुछ कमी है। उसमें कुछ पशुता शेष है।
पंरपरावादी में थोड़ी पशुता शेष रहती है। इसलिए ठीक धार्मिक व्यक्ति पंरपरा-वादी नहीं हो सकता। ठीक धार्मिक व्यक्ति विद्रोही होता है, बगावती होता है। वह अपनी समझ से जीता है, शास्त्र से नहीं। अगर समझ और शास्त्र में विरोध हो तो वह समझ के पीछे जाता है, शास्त्र के पीछे नहीं। परंपरावादी समझ को एक तरफ रख देता है, शास्त्र के पीछे जाता है।
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