आदमपुर,
भाजपा नेता विनोद ऐलावादी की माता का निधन सोमवार अलसुबह हो गया। उनका अंतिम संस्कार आज 12 बजे बैकुंठ धाम में किया जाएगा। धार्मिक विचारों से ओत—प्रोत माता शांतिदेवी का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। लेकिन बंटवारे के बाद उन्होंने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार के साथ पाकिस्तान की जगह भारत को अपना मुल्क चुना। करीब 92 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।
मकान—जमीन नहीं धर्म बड़ा
माता शांति देवी बताती थी कि जब हिंदुस्तान—पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वो 14 साल की थी। उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ था। वहां मुलतान क्षेत्र के खानेवाल जिले में टालीवाला गांव में उनका घर, जमीन और करोबार था। पूरा परिवार पाकिस्तान में सदियों से रह रहा था। वहां पर काफी रसूखदार परिवार था उनका। दुकान काफी अच्छी चलती थी। भैंस और जमीन की देखभाल के लिए लोग रख रखें थे। लेकिन जैसे ही देश का बंटवारा हुआ तो उनके परिवार पर हिंदू धर्म बदलकर मुस्लिम बनने का दवाब पड़ोस के लोग ही बनाने लगे। कल तक साथ मिलजुल कर रहने वाले और हमारी दुकान, खेतों में काम करने वाले ही हमें धर्म बदलने की नसीयत देने लगे। वे लोग धमकाते हुए बोलते थे कि जमीन—ज्यदाद और पैसे प्यारे है तो धर्म बदल लो। इस्लाम कबूल करो और यहां पर मजे से रहो। इस पर परिवार के लोगों ने बैठक करके निर्णय लिया कि भूखे मर जायेंगे लेकिन अपना धर्म नहीं बदलेंगे। बाद में अपने कारोबार, मकान—दुकान सबको ताला लगाकर हिंदुस्तान आने का निर्णय लिया।
काफी मुश्किल भरा रहा सफर
माता शांति देवी बताती थी कि पाकिस्तान से हिंदूस्तान का सफर काफी कठिन रहा। रेलगाड़ियों में भेड़—बकरी की तरह ठूंस—ठूंस कर इंसानों को भरा जा रहा था। जैसे तैसे करके हमारा परिवार हिंदूस्तान पहुंचा तो उन्हें करनाल उतारा गया। करनाल से हिसार जिले में खारा बरवाला में जमीन अलाट हुई। इसके बाद उनका परिवार खारा बरवाला आ गया। आधे परिवार को गांव सदलपुर में जमीन अलाट हुई थी। बाद में धीरे—धीरे पूरा परिवार आदमपुर में शिफ्ट हो गया। यहीं पर उनके 6 बेटे सुरेंद्र कुमार, सतीश कुमार, अशोक वकील, विनोद ऐलावादी, विजय कुमार व बलदेव ऐलावादी ने अपना कारोबार, राजनीति और सरकारी नौकरी में मुकाम बनाया।
जहां धर्म नहीं वहां मुख भी नहीं करना
माता शांति देवी से कई बार पूछा गया कि क्या वे अब पाकिस्तान जाकर अपना गांव देखना चाहते है तो उनका एक ही जवाब होता था जहां हमारा धर्म नहीं वहां जाना तो दूर मुख करना भी गुनाह है। अंतिम समय तक वे हिंदूत्व की सबसे बड़ी मुखर समर्थक रही। इसी का परिणाम रहा कि सोमवार को एकादशी के दिन अंतिम समय में भी वो गुरु का दिया मंत्र सिमरन करते हुए संसार को अलविदा कहकर प्रभूचरणों में लीन हो गई।