धर्म

ओशो : कैवल्य उपनिषद-208

सुना है मैंने, मोझर्ट के संबंध में। मोझर्ट बड़ा संगीतज्ञ था। एक दिन उसने एक अनूठे संगीत की व्यवस्था को जन्म दिया। संगीत बंद हो गया। केवल एक मात्र उसका मित्र सुनने आया है। संगीत बंद हो गया है, मोझर्ट शांत हो गया, वाद्य शून्य हो गये, लेकिन जो मित्र आया है, वह अभी भी डोले चला जा रहा है। बहुत देर हो गयी तो मोझर्ट ने मित्र को हिलाया और कहा कि अब बंद हो ही गया, अब तुम क्यों हिले चले जा रहे हो? तो उस मित्र ने कहा कि जब तक तुम बजा रहे थे, तब तक तो जो था, वह व्यक्त था। व्यक्त तो खो गया, अब अव्यक्त मे मैं आनंदित हो रहा हूं। तो वह तो संगीत की परिधि थी सिर्फ, अब मैं संगीत के केंद्र पर डूब रहा हूं। बाधा मत डालो। जीवन आधार नवंबर माह प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
व्यक्त में ही अगर हम उसे खोजने जाएगें, वही तो चेष्ठा विज्ञान की है हम व्यक्त में ही खोजेगें। तो अगर आदमी में परमात्मा है तो विज्ञान कहता है हम चीर-फाड़ करेंगे, विश£ेषण करेंगे और जो व्यक्त है उसमें जांच कर लेंगे- है या नहीं। व्यक्त की जांच हो जाती है, भीतर कोई आत्मा मिलती नहीं। क्योंकि आत्मा अव्यक्त है। और जो व्यक्त है, वह शरीर की परिधि है। तो व्यक्त को अगर पीटेंगे, काटेंगे, तो अव्यक्त खो जाएगा। ऐसे ही जैसे एक सुंदर फूल खिला है, गुलाब का फूल खिला है और अगर मैं कहूं सुंदर है, तो आप पूछें कि सौंदर्य कहां हैं? तो हम फूल को काटकर- पीटकर देखेंगे, विश£ेषण करेंगे, प्रयोगशाला में जांच करेंगे कि सौंदर्य कहा हैं? फूल कट जाएगा, जो हाथ में आएगा वह सौंदर्य नहीं होगा, कुछ और ही होगा। रासायनिक-तत्व होंगे, कुछ खनिज होंगे, वह हमारे हाथ में लग जाएगें। रंग निचुड़ आएगा, वह हमारे हाथ में लग जाएगा। फूल में जो-जो वस्तु हैं, वह हमारे हाथ लग जाएगी। हम बोतलों में बंद करके एक-एक चीज को अलग लेबल में लगाकर रख देंगे, लेकिन एक बात पक्क्ी है उन बोतलों में वह बोतल नहीं होगी जिस पर लिखा हो -सौंदर्य।
और तब हम कह सकते हैं बिलकुल तर्क-व्यवस्था से कि सौंदर्य था ही नहीं। क्योंकि सब हमने जांचकर देख लिया, एक भी चीज छोड़ी नहीं , सब इन बोतलों में बंद हैं।- पूरा -का -पूरा फूल बोतलों में बंद हैं। नाप लो वजन, जितना वजन फूल का था उतने वजन की चीजें बंद है, सब पूरा मौजूद है, सौंदर्य कहीं हैं नहीं। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
सौंदर्य अव्यक्त था। फूल व्यक्त था। फूल से प्रगट हो रहा था वह अव्यक्त । ऐसा हम समझें कि फूल की व्यक्त भूमि को अव्यक्त ने अपना आवास बनाया था। आपने भूमि हटा ली, अव्यक्त तिरोहित हो गया, वीणा, को कोई बाजा रहा है तो हम सोचते हैं कि वीणा के तार में ही संगीत है, तो हम गलती में पड़ जाएंगे। तार सिर्फ तार है। और कितनी ही जांच-पड़ताल करो, तार में संगीत नहीं मिलेगा। या सोचते हो कि वीणा के वाद्य के लकड़ी को तोड-फोड़ कर संगीत का पता चलेगा, तो भी पता नहीं चलेगा। वीणा तो केवल माध्यम बनती है अव्यक्त के प्रगट होने का। अगर वीणा केवल माध्यम बनती है अव्यक्त के प्रगट होने का। अगर वीणा में ही खोज की तो संगीत का कोई पता नहीं चलेगा।
अगर वीणा टूट गयी, और वीणा को तोडक़र, टूकड़े तोडक़र के जांच कर ली, तब तो फिर कोई उपाय भी नहीं रहेगा अव्यक्त को प्रगट होने का। वीणा को केवल माध्यम बनती है अव्यक्त को प्रगट होने का। और जब संगीतज्ञ वीणा को कसता हैं, संवारता हैं, तब वह क्या कर रहा हैं? तक इतना ही कर रहा है, ताकि वीणा उपयुक्त माध्यम बन सके अव्यक्त के उतरने का। तब वीणा के माध्यम को संभाल रहा हैं ताकि अव्यक्त अपने पैर रख सके वीणा के तारों पर प्रगट हो सके। योग्य हो जाए अव्यक्त के। वीणा बजा लेना उतना कठिन नहीं, जितना वीणा के अव्यक्त के प्रगट होने योग्य बनाना।
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