धर्म

ओशो : गहरा प्रेम करो

प्रेम करो। प्रेम से बचो मत। गहरा प्रेम करो! इतना गहरा प्रेम करो कि जिससे तुम पेम करो, वही तुम्हारे लिए परमात्मा हो जाए। इतना गहरा प्रेम करो! तुम्हारा प्रेम अगर तुम्हारे प्रेम—पात्र को परमात्मा न बना सके तो प्रेम ही नहीं है, तो कहीं कुछ कमी रह गई। तुम्हारे महात्मा कहते हैं कि प्रेम के कारण तुम परमात्मा को नहीं पा रहे हो। इस भेद को समझ लेना। इसीलिए अगर तुम्हारे महात्मा मुझसे नाराज हैं तो बिल्कुल स्वाभाविक है। अगर मैं सही हूं तो वे नाराज होने ही चाहिए। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
मैं कह रहा हूं:प्रेम तुुम में कम है,इसीलिए परमात्मा तुम्हें दिखायी नहीं पड़ता। तुम्हारी वासना बड़ी अधुरी है, अंपग है। तुम्हारी वासना को पंख नहीं है। पंख दो! तुम्हाी वासना को उड़ना सिखाओ। तुम्हारी वासना जमीन पर सरक रही है। मैं कहता हूं:वासना को आकाश में उड़ना सिखाओं।
परमात्मा अगर वासना के द्धार संसार में उतरा हैं, तो तुम वासना की ही सीढ़ी पर चढ़ कर परमात्मा तक पहूंचोगे,क्योंकि जिस सीढ़ी से उतरा जाता है उसी से चढ़ा जाता है। फिर तुम्हें दोहरा कर कह दूं। पूराने शास्त्र कहते है: परमात्मा में वासना जगी कि मैं अनेक होउं। अकेला—अकेला थक गया होगा। तुम भीड़ से थक गए हो, अब तुम वापिस एंकात पाना चाहते हो, मोक्ष पाना चाहते हो, कैवल्य पाना चाहते हो,ध्यान —समाधि पाना चाहते हो। चढ़ो से,जिससे परमात्मा उतरा। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
इसीलिए मैं कहता हूं:संभोग और समाधि एक ही सीढ़ी के दो हिस्से हैं:दिशा का भेद है,और कोई भेद नहीं है; परमात्मा उतरा है समाधि से संभोग की तरफ, तो संसार बना है, नहीं तो संसार नहीं बन सकता था। तुम चलो संभोग से समाधि की तरफ, तो तुम संसार से मुक्त हो जाओगे। उसी सीढ़ी से चलना होगा , और कोई सीढ़ी नहीं है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
तुम जिस रास्ते से चल कर मुझ तक आए हो,घर जाते वक्त उसी रास्ते से लौटोगे न! तुम यह नहीं कहोगे कि इस रास्ते से तो हम अपने घर से दूर गए थे, इसी रास्ते पर हम कैसे अपने घर के पास जाएं, यह तो बड़ा तर्क विपरीत मालूम पड़ता है। नहीं तुम जानते हो कि तर्क विपरीत नहीं है। जो रास्ता यहां तक लाया हैं वही तुम्हें घर वापिस ले जायेगा। सिर्फ दिशा बदल जाएगी, चेहरा बदल जायेगा। आते वक्त घर की तरफ पीठ थी, जाते वक्त घर की तरफ मूंह हो जायेगा। बस इतना—सा रूपांतरण। विरोध नहींवैमनस्य नहींं, दमन नहीं , जबर्दस्ती नहीं, हिंसा नहीं।
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