धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—56

जब लंंका पर चढ़ाई का समय आया तो समुद्र को लांघने के लिए पुल बनाने की योजना बनाई गई। तय हुआ, पत्थरों को इकठ्ठा किया जाए। वानर सेना लग गई, सेवा कार्य शुरू हुआ। पानी पर सेतु बनाना है कैसे किया जाए? भक्त हुनमान् श्रीराम के अनन्य भक्त थे, उन्होंने विचार रखा- प्रत्येक पत्थर पर श्रीराम लिखकर पानी में छोड़ा जाये तो मुझे पूर्ण विश्वास है पत्थर, लकड़ी की तरह पानी की सतह पर तैरने लगेंगे और इस तरह सेतु तैयार हो जायेगा और समुद्र पार करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

सर्वप्रथम हनुमान्जी ने ही पत्थर पर श्रीराम् की प्रतिमा का अंकन किया, चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया और श्रीराम् लिखा और दृढ़ विश्वास के साथ पानपी में छोड़ दिया। पत्थर-लकड़ी की तरह पानी पर तैर गया। सभी को विश्वास होग या और सभी ने कार्य प्रारम्भ कर दिया। हाथ कंगन को आरसी क्या?

प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्कता नहीं होती। संायकाल तक काफी कार्य सम्पन्न हुआ। बात श्रीराम जी के पास पहुंची, मन में आया, मैं भी पत्थर को डालकर देखूं, कैसे तैरता हैं? रात को अन्धेरे में अकेले चल पड़े। समुद्र के किनारे आए इधर-उधर देखा, कोई मुझे देख तो नहीं रहा हैं? कोई दिखाई नहीं दिया, परन्तु हनुमान्जी एक वृक्ष की ओट में छिपकर सब कुछ देख रहे थे। श्रीरामजी ने एक पत्थर लिया और लिखा, श्रीराम् और ज्योंही पानी में छोड़ा त्योंही नीचे डूब गया, ऊपर पानी में लहरे उठी और समाप्त हो गई।

प्रभु को बड़ा आश्चर्य हुआ और फिर इधर-उधर देखा कि किसी ने यह देखा तो नहीं? सोच ही रहे थे कि भक्त हुनमान् आये चरणों में नतमस्तक होकर लगे, प्रभो इसमें विचार करने की कोई बात ही नहीं। जिस पत्थर को आपने छोड़ दिया वह भला कैसे तैर सकता है? आपसे होकर कोई जीव भव- सागर से पार नहीं हो सकता। आश्चर्य, विनोद में बदल गया। तक से यह सिद्ध हो गया।

श्रीकृष्ण ने गीता में अनेक में अनेक स्थानों पर अर्जून को सम्बोधित करके कहा है, हे कौन्तय मुझे जपनेवाला बिना किसी रूकावट के मेरे पास पहुंच जाता है। वह चाहे किसी भाव से मेरा सुमिरण करे, मुझे पुकारे तो मैं उसके पास अवश्य आता हूँ।

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