बंशीधर,
क्षेत्रावाद भारतीय राजनीति में सदा से रामबाण का काम करता है। गुजरात चुनावों के परिणामों ने साफ कर दिया कि नरेंद्र मोदी के गुजराती होने का लाभ भाजपा को मिला। नरेंद्र मोदी के बल पर भारतीय जनता पार्टी गुजरात में फिर से अपनी सरकार बहुमत के साथ बनाने में कामयाब रही। लगातार 22 साल के शासन के खिलाफ हवा चलाने की कांग्रेस ने काफी काशिश की। राहुल गांधी ने काफी मेहनत भी की। हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर ने भी अपनी पूरी उर्जा भाजपा को हराने में लगा दी। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा के आंकड़ें गिरे।
जीएसटी और नोटबंदी का जितना ‘रोना रोया’ जा रहा था, वह गुजरात चुनावों में दिखाई नहीं दिया। शहरी तबकों में भाजपा को मिली बंपर कामयाबी ने साफ कर दिया कि गुजरात के व्यापारियों ने नरेंद्र मोदी के दोनों फैंसलों को खुले दिल से आत्मसात कर लिया है। चुनाव से पहले लग रहा था कि भाजपा का गुजरात किला इस बार ढह सकता है। राज्य में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ माहौल काफी बनाया चुका था। लेकिन चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया जनता का ‘मोदी ब्रांड’ में अभी विश्वास कायम है। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटी भाजपा के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम ‘संजीवनी’ का काम कर गए। संजीवनी का प्रयोग इसलिए किया गया है क्योंकि पिछले कुछ समय से जीएसटी और विभिन्न राज्यों में चले जातीय आंदोलन के कारण लगने लगा था कि देश में भाजपा की पकड़ कमजोर हो रही है। भाजपा के नीचले स्तर के कार्यकर्ताओं में कहीं न कहीं हताशा देखने को मिल ही जाती थी। लेकिन इन दोनों जीत ने सभी स्तर के कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भर दिया।
वहीं कांग्रेस की बात की जाए तो गुजरात के चुनाव उसके लिए खट्टा—मीठा रहा है। सीटों की नजर से देखा जाए तो कांग्रेस ने सुधार किया है लेकिन वोट प्रतिशत की नजर से देखा जाए तो उसका प्रदर्शन गिरा है। दूसरी तरफ भाजपा ने पिछले चुनावों की तुलना में अपनी कई सीटों को खो दिया, लेकिन वोट प्रतिशत में उसका प्रदर्शन कुछ हद तक बढ़ा है।
क्या रहे भाजपा के जीत के मुख्य कारण
गुजरात चुनाव के शुरुआती दौर में पिछड़ती नजर आ रही भाजपा के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर ने जीत की राह आसान करने में बड़ी भूमिका निभाई। मणिशंकर अय्यर के बयान को नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के नीचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने जन—जन में पहुंचाकर भाजपा प्रति सहानुभूति बटोरने का काम किया।
चुनाव प्रचार के अंतिम दौरन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजराती अस्मिता की अलख जगाई। क्षेत्रावाद की इस अलख में वे कामयाब रहे। गुजरात के लोगों ने बड़ी संख्या में क्षेत्रावाद के नाम पर वोट किए। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला।
जीएसटी और नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने भाजपा को घेरने की पूरी कोशिश की, लेकिन लोगों ने इन दोनों को अपने में आत्मसात कर लिया है। इसके चलते विपक्ष का यह प्रचार भाजपा के लिए नुकसान के स्थान पर लाभदायक साबित रहा। आमजन को अभी लग रहा है कि मोदी के ये दोनों कदम देश की आर्थिक स्थिती को आगे ले जाने में सहायक होंगे। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
गुजरात चुनावों में पाटीदारों का मुद्दा काफी अह्म था। हार्दिक पटेल ने इसी मुद्दों पर भाजपा को सत्ता से उखाड़ फैंकने का ऐलान किया था। इसको लेकर कांग्रेस और हार्दिक पटेल ने बड़े चक्रव्यूह की रचना की थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम और अमित शाह की नीतियों के आगे इस चक्रव्यूह में कई छेद हो गए और इसे भेदने में भाजपा काफी हद तक कामयाब रही। इसी प्रकार ओबीसी नेताओं के विरोधी स्वर के खिलाफ भी भाजपा की रणनीति कामयाब रही।
भाजपा की जीत में सबसे बड़ी भूमिका निभाई मजबूत संगठन ने। अमित शाह बूथ स्तर के मजबूत संगठन और गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे। काफी कठिन लगने वाले इस चुनाव को भाजपा ने बूथ स्तर पर मजबूती के साथ लड़कर जीत लिया।
क्या रहे कांग्रेस की हार के मुख्य कारण
कांग्रेस की लुटिया डुबोने में मणिशंकर अय्यर के बोलों का काफी बड़ा योगदान रहा। प्रधानमंत्री के लिए प्रयोग किए गए उनके एक शब्द ने पूरे चुनाव की तस्वीर ही बदलकर रख दी। योद्धा की तरह चुनाव मैदान में उतरी कांग्रेस अय्यर के एक शब्द से बचाव मोड पर आ गई और भाजपा ने आक्रमक रुप अपना लिया। यहां कांग्रेस बुरी तरह मार खा गई। इसके अलावा पार्टी के कई नेताओं के बिगड़े बोलों ने राहुल गांधी के मेहनत पर पानी फेर दिया।
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी गुजरात की सत्ता से लंबें समय से बाहर रहना भी रहा। पिछले 22 सालों के दौरान पार्टी के कार्यकर्ता लगातार पार्टी से किनारा करते रहे, लेकिन उन्हें पार्टी में वापिस जोड़ने की कोशिश नहीं की गई। इसके चलते पार्टी का संगठन कमजोर रहा। संगठन कमजोर होने के कारण बूथ स्तर पर पार्टी की सही पकड़ नहीं बन पाई। बूथ कमजोर रहने के कारण कांग्रेस को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
कांग्रेस ने इस चुनावों में अपने कद्दावर नेताओं के स्थान पर हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर पर ज्यादा भरोसा जताया। ये तीनों युवा नेता समुदाय या जाति विशेष के नेता थे। इसलिए आमजन कांग्रेस से नहीं जुड़ पाए। यदि कांग्रेस चुनाव में इन तीनों नेताओं के साथ अपने कद्दावर नेताओं का भी सही इस्तेमाल करती तो शायद आमजन भी कांग्रेस के साथ जुड़ता। इसके विपरीत भाजपा ने आमजन को जोड़ने के लिए अपने बूथ स्तर के संगठन के साथ—साथ अन्य राज्यों के बड़े नेताओं की पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक रखी थी।
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हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर के सहारे चुनावी दंगल में उतरी कांग्रेस से शहरी वोटर दूर हो गया। ये तीनों ग्रामीण तबकों में अवश्य कांग्रेस को वोट दिलाने में कामयाब रहे, लेकिन शहरी तबका जात—पात के नाम पर पूरी तरह से कांग्रेस से दूर हो गया। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिला। सही मायने में देखा जाए तो कांग्रेस शहरी और ग्रामीण वोटरों को अलग—अलग चेहरा और मुद्दा देने में सफल नहीं हो पाई।
गुजरात में कांग्रेस के दर्जनभर बड़े नेताओं का अपनी सीट भी ना बचा पाना काफी नुकसान भरा रहा। कांग्रेस की ओर से सीएम कैंडिडेट की दौड़ में शामिल शक्ति सिंह गोहिल,अर्जुन सिंह गोठवाडिया पूर्व सीएम चिमन भाई पटेल के बेटे सहित कई दिग्गज अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। अगर कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता चुनाव जीत जाते तो आज गुजरात की तस्वीर अलग होती। क्योंकि सोमवार को आए नतीजों में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी को 99, कांग्रेस गठबंधन को 80 और अन्य को तीन सीटें मिली हैं। ऐसे में यदि कांग्रेस के दिग्गज जीते होते तो ये आंकड़ा कुछ अलग ही होता।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि गुजरात का यह चुनाव दोनों पार्टियों के लिए अग्निपथ के समान था। इस अग्निपथ पर नंगे पांव चलकर भाजपा ने फिर से सत्ता प्राप्त कर ली, जबकि कांग्रेस को हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर जैसा क्वच मिलने के बाद भी पराजय ही मिली।
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