धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—101

एक ब्राह्मण बालक था,नाम था अजामिल। अजा+मिल अर्थात् जो माया से मिला हुआ है,उसको अजामिल कहते हैं। प्रत्येक जीव माया के च्रक में फंस ही जाता है। अजामिल भी युवावस्था में ही बुरी संगत में पड़ गया और एक दिन पिंगला वेश्या केे यहाँ पहुंच गया और कामांध होकर उसी से शादी कर ली और वहीं रहने लगा।

माता-पिता की लापरवाही के कारण ही बच्चे कुसंगत में पड़ते हैं और उसका परिणाम बुरा ही होता है। अत: माँ बाप को 16 से 25 वर्ष की उम्र के बीच के समय उनका बच्चा किसके साथ रहता है,कहाँ जाता है आदि का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए,क्योंकि यह समय किशोर और युवावस्था का संगम होता है। इस समय बच्चे में स्वच्छन्द और स्वतंत्र होने की प्रकृति ज्यादा होती है,अत: अधिक सावधानी और सतर्कता की आवश्यकता होती है।

जैसे कुम्हार मटका बनाते समय एक हाथ मटके के अन्दर रक्षा हेतु रखता है और दूसरे हाथ से बनाने के लिउ धीरे-धीरे ऊपर से चोट भी मारता है,इसी प्रकार प्रत्येक माँ-बाप का यह कर्तव्य बनता है कि बच्चे को सत्पे्ररणा दे,सत्संग में लगाए और कुसंगत से बचाए,ताकि उनका भविष्य उज्जवल बन सके।

व्यसन कभी अकेला नहीं आता,सातों व्यसन एक साथ आते हैं। अजामिल भी प्रतिदिन शराब पीता हैं,जूआ खेलता है,मांस खाता है,चोरी करता है इत्यादि। एक दिन भिक्षा मांगते हुए एक सन्त उनके दरवाजे पर पहुंच गए। सन्ध्या का समय था,बाहर से सन्त ने आवाज लगाई, भिक्षा देंहि,अलख निरंजन। पिंगला ने आवाज सुनी और खाद्य सामग्री लेकर दौड़ी दौड़ी दरवाजे पर आई और कहने लगी,आज मेरे भाग्य जगे हैं, जो सन्तों का पदार्पण मेरे दरवाजे पर हुआ है। हे महाराज आज तक इस दरवाजे पर कोई सन्त,महन्त,तथा भक्त नहीं आया, यहां तो हमेशा शराबी,जुआरी, और व्याभिचारी ही आते हैं।

सन्त ने ऊपर देखा तो घबरा गए,मैं कहां आ गया? सामने पिंगला बड़े सुन्दर कपड़े,आभूषण पहने खड़ी है, पूछा,देवी तुम कौन हो? वेश्या हँसने लगी और बोली, महाराज मैं कौन हूं? यह तो आज तक कोई नहीं बता सके। जो आप मुझसे पूछ रहे हो,यही प्रश्र श्रीराम ने गुरू वशिष्ठजी से पूछा था- हे गुरूदेव । मैं कौन हूं? जब उन्होंने इस छोटे से प्रश्र का उत्तर दिया तो पूरा ग्रन्थ बन गया योगवाशिष्ठ। हे महाराज सब कहते हैं कि तू मेरी है तू मेरी है,लेकिन मुझे नहीं पता कि मेरा कौन है? यह मेरा शरीर बदनाम गणिका के नाम से जाना जाता है और मेरी आत्मा कौन है? यह तो महाराज। आप ही बता सकते हो।

सन्त पीछे हटने लगे तो गणिका ने कहा महाराज। आप बदनामी के डर से पीछे हटते हैं यह ठीक नहीं। शायद आपने सन्त वाणी नहीं पढ़ी-सन्त गुरूजन कभी अपने आप किसी के दरवाजे पर नहीं जाते। उनको तो परमात्मा ही प्रेरित करके किसी के यहाँ भेजते हैं।
महाराज परमात्मा की कृपा के बिना सन्त मिलन नहीं होता। आज मुझ पतिता पर प्रभु की कृपा हुई है,तभी आपका यहां पदार्पण हुआ है। महाराज मैं अधम हूं ,पापी हूं, परन्तु मैं कभी अपने अवगुण नहीं छिपाती,मैं अधम कार्य करती हूं, परन्तु प्रभु से नित्य प्रतिदिन प्रार्थना करती हूं, हे भगवान आप पतित पावन हैं, यदि आपने मुझ पतिता का उद्धार नहीं किया तो आपका नाम बदनाम हो जायेगा, इसलिए मेरा उद्धार करना ही होगा।

इस प्रकार सन्त और गणिका पिंगला आपस में बात कर ही रहे थे कि आजामिल शराब के नशे में चूर,हाथ में बोतल लेकर आ गया। दरवाजे पर सन्त को खड़ देखकर हँसा और पूछा महाराज क्या आप भी शराब पीएंगे? आइए अन्दर आइगए, शराब पिलाऊंगा । सन्त ने सोचा आज गलत द्वार पर आ गया हूं,पीछे हटने लगे अजामिल ने मजाक किया,महाराज शर्माओं नहीं, यहां तो करोड़पति से लेकर भिखारी तक सब आते हैं, और मैं सबको नशा करवाता हूं,संत ने प्रभु का नाम लिया और हिम्मत से कहा, अजामिल नशा करने नहीं,करवाने आया हूं। अच्छा इसका मतलब आपके पास भी कुछ है। कौन सा नशा करवाते हो महाराज?

सन्त ने कहा हे अजामिल जितनी मादक वस्तुएं इस संसार में है उनकी मादकता तो केवल आठ-दस घण्टे ही रहती है और फिर नशा उतर जाता है,लेकिन परमात्मा के नाम रूपी नशा जिसको एक बार चढ़ जाता है व जिन्दगी भर उतरता नहीं है, सन्त ने कहा, अजामिल मैंने भोजन तो कर लिया लेकिन अभी दक्षिणा लेनी बाकी है, अजामिल ने कहा महाराज मैंने आपको लूटा नहीं यही दक्षिणा समझो।

मैं किसी को कुछ देता नहीं हूं,मौ तो हमेशा लूटता ही हूँ। सन्त ने कहां अजामिल सन्त जिससे मिलते हैं उसको कुछ न कुछ देकर जाते हैं,अत: तुम हमारी एक बात मान लो,तुम्हारा कल्याण हो जायेगा। अजामिल महाराज वैसे तो मैंने आज तक किसी का कहना नहीं माना,लेकिन एक बात मानने से कल्याण हो जायेगा, तो मान लूंगा। सन्त ने कहा, हे अजामिल! ये ये मानवरूपी शरीर मिट्टी से बनला हुआ एक खिलौना है जो काल रूपी समय की ठोकर से एक दिन टूट जाएगा और जिसको तू अपना कहता है वही सब मिलकर इस शरीर को चिता पर रखकर एक मुठ्ठी राख बना देंगे।

यह मानवरूपी जीवन हीरे के समान हैं इसको मोह माया के जाल मे फंसकर व्यर्थ मत गवाओंञ ऐसा मौका बार-बार हाथ नहीं आता। तुम्हारी धर्मपत्नी पिंगला गर्भवती है ,होनेवाले पुत्र का नाम नारायण रखना यही मेरी तुमसे विनती है। अजामिल ने स्वीकृति दी और चरणों में प्रणाम किया और सन्त आर्शीवाद देकर चले गए।

नौ मास पूरे होने पर अजामिल के घर पुत्र का जन्म हुआ। नाम रखा गया नारायण। बच्चे के प्रति माँ बाप का प्रेम होना स्वाभाविक है। अजामिल उठते बैठते सोते जागते, खाते-पीते, हर क्षण नारायण-नारायण पुकारता रहता है। संत लेते तो केवल एक समय भोजन ही है परन्तु एक वाक्य ऐसा दे जाते हैं जिससे जीवन का कल्याण हो जाता है। संतो के पास परमात्मा का नामरूपी धन ही है। रूपया -पैसा जो भी आप सन्तों को अर्पण करते हैं, उसे सन्त समाज की भलाई में लगा देते हैं।

मीरा ने भी यही नामरूपी धन पाकर आनन्द प्राप्त किया और अपनी भावभरी भंगिमाओं से भगवान् श्रीकृष्ण को प्राप्त किया। मीरा जहर का प्याला पी कर जब नाचने लगी तो उसकी सास ने सोचा कि यह पागल हो गई है इसलिए नाच रही है। लेकिन मीरा ने कहा हे माँ। मैंने परमात्मा ने नामरूपी धन को पा लिया है। और मग्र होर गाने लगी।
मरे सद्गुरू ने मुझ पर कृपा करके नाम रूपी धन जो अजामिल हैं,मुझको दिया। धन-सम्पति को जितना खर्च करोगे उतनी घटती है,परन्तु नाम-धन को जितना बांटोगे उतना बढ़ता जायेगा। मेरे प्रभु गिरध्र,नागर श्रीकृष्ण कैन्हैया है और मेरे सद्गुरू मेरे जीवनरूपी नैया को भव-जन से पार उतारने वाले नाविक है अत मैं निश्चित होकर नाम रस का पान करके इस लोक का आनन्द ले रही हूं।

जो परमात्मा के नाम में लीन हो जाता है उसे परमात्मा अपने में लीन कर लेते हैं। इस प्रकार अजामिल भी रात-दिन नारायण-नारायण अपने पुत्र को पुकारता रहता है। नारायण पाँच साल का हो गया। बालक नारायण अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था और अजामिल आराम से लेटे हुआ था, अचानक यमराज के काले काले दूत आ गए। देखकर अजामिल घबराया और अपने प्रियतम बेटे को पुकारने लगा ,नारायण-नारायण।

हे नारायण, बचाओ,बचाओ करते करते कण्ठ बन्द हो गया। जीभ नहीं हिलती है,अन्दर से हृदय की धडक़न से निकलने लगा,नारायण-नारायण-नारायण।
नारायण का नाम सुनकर ,नारायण के दुत दौंडे आये और यम के दूतों से कहा, अजामिल के लिए हम विमान लेकर आए है,क्योंकि इसने नारायण का नाम पुकारा है। जो भगवान् का नाम लेता है, उसको परमात्मा अपनी शरण में लेता है।

यमदूतों ने कहा, यह सत्य हैं लेकिन भगवान् का नाम अनजाने में भी निकल जाता है तो भी उसका फल मिलता है। सन्तों ने नाम जपवाने के लिए ही तो उसके पुत्र का नाम नारायण रखवाया था। इसलिए इसने पाँच साल तक नारायण-नारायण,जितनी बार उच्चारण किया,उसका ही फल इसको मिला है। अजामिल ने ये सब वार्ता सुनी। हृदय में अपने पापों का प्रायश्चित्त किया, जिसके कारण उसके सारे पाप जल गए, और सद्गति को प्राप्त हुआ।

यह है नाम कि महिमा। प्रेमी सज्जनों। अपनी सन्तान का नाम भी परमात्मा के नाम पर रखो- श्याम सुन्दर,मन मोहन, श्रीकृष्ण, नारायण हरि, ऊँ इत्यादि। किसी ने अपने बेट का नाम गिरधारी,लेकिन घर में प्यार से उसे गिगला कहने लगे, बचपन में जो नाम पुकारने लगते है वही नाम फिर सब पुकारने लगते हैं। शादी हो गई, बच्चे हो गए, फिर भी नाम रहा गिगला। कहने का पात्पर्य है कि जिस प्रकार अजामिल का पुत्र नारायण पुकारने से आत्म कल्याण हो गया, इसी प्रकार जब जीभ प्रभु- नाम रटने लगेगी तो अभ्यास हो जायेगा, और अन्त समय पुकारने से करूणासागर परमात्मा दर्शन देने चले आंयेगे।

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