धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से —572

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने प्रवचन में ईश्वर के नाम की महत्ता बता रहे थे। उनके ईद-गिर्द अनेक भक्तजन थे। सभी ध्यान से उनकी बातों को सुन रहे थे। तभी एक व्यक्ति बोला, ‘स्वामी जी आप बार-बार कह रहे हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है, हमें अच्छे और कर्णप्रिय शब्द बोलने चाहिए। ऐसे शब्द साक्षात ईश्वर तक पहुंचते हैं और व्यक्ति के अंतर्मन को सुख व शांति प्रदान करते हैं। आप बताएं कि शब्दों में क्या रखा है? यदि हम अच्छे शब्द नहीं बोलेंगे तो क्या ईश्वर नाराज हो जाएंगे?’

स्वामी जी बोले, ‘ईश्वर तो दूर की बात है। अपशब्दों के प्रयोग से तो मनुष्य भी नाराज हो जाता है।’ वह व्यक्ति बोला, ‘मैं इस बात को नहीं मानता।’ इस पर स्वामी जी उस व्यक्ति से बोले, ‘आप अत्यंत मूर्ख, जाहिल, गंवार और बेवकूफ व्यक्ति हैं। आप से बड़ा मूढ़ व्यक्ति शायद ही इस पृथ्वी पर हो। आप को तो किसी भी काम की समझ नहीं है। आपका जीवन व्यर्थ है।’ स्वामी जी के मुंह से अचानक निकले ऐसे शब्द सुनकर वह व्यक्ति हैरान रह गया। वह दुखी स्वर में उनसे बोला, ‘आप स्वयं को स्वामी कहते हैं और ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। आखिर आपने मुझमें ऐसी क्या कमी देखी है, जो मेरे लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं?’ स्वामी जी बोले, ‘मैंने तो सिर्फ तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है। तुम कह रहे थे कि शब्दों में भला क्या रखा है? फिर इन शब्दों से तुम्हें इतना आघात क्यों पहुंचा?’

स्वामी जी का जवाब सुनते ही उसे अपनी भूल का अहसास हो गया। उसने क्षमा मांगते हुए कहा, ‘स्वामीजी आप सही कहते हैं। शब्दों का बहुत महत्व है।’ स्वामी जी बोले, ‘शब्दों की अहमियत हमेशा याद रखनी चाहिए। बिना सोचे-समझे बोले गए शब्द व्यक्ति को असंतुलित कर देते हैं। इसके विपरीत, सोच-समझ कर बोले गए शब्द हमारे आसपास के माहौल को सकारात्मक बनाए रखते हैं।’

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, शब्दों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमें हमेशा सोच-समझकर शब्दों का चयन करना चाहिए, क्योंकि वे किसी को खुशी भी दे सकते हैं और दुख भी।

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