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आधुनिक भारत में छुआछूत के चौकान्नें वाले आंकड़े आए सामने

नई दिल्ली,
समाज से छुआछूत मिटाने के लिए काफी लंबे वक्त तक जन आंदोलन हुए बावजूद 21वीं सदी के भारत में ये सामाजिक बीमारी अब भी घर किए हुए है। एक ताजा सर्वे में सामने आया है कि राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की दो तिहाई आबादी अब भी इस सामाजिक दंश को झेलने के लिए मजबूर है।
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छुआछूत को लंबे वक्त पहले ही अपराध की श्रेणी में रखा गया है, बावजूद इसके सर्वे से निकलकर आया कि दोनों राज्यों के इन इलाकों में लोग दलित और गैर दलित हिन्दुओं में अंतरजातीय विवाह का विरोध करते हैं। बताया गया कि महिलाएं इस कुप्रथा को ढोने के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं। ग्रामीण राजस्थान की 66 फीसद तो ग्रामीण यूपी की 64 फीसद आबादी छुआछूत की जद में है।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक ग्रामीण ही नहीं बल्कि शहरी इलाकों में इस कुप्रथा का प्रचलन कम नहीं है। सर्वे के मुताबिक राजस्थान के 50 फीसद शहरी छुआछूत मानते हैं जबकि यूपी में 48 फीसद और दिल्ली की 39 फीसद आबादी छुआछूत को मानने वाली है।
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सोशल एटीट्यूड रिसर्च इंडिया (SARI) नाम के इस सर्वे को साल 2016 में फोन के जरिए कराया गया था। इसमें दिल्ली, मुंबई, राजस्थान, यूपी के इलाके शामिल थे। इसका मुख्य मकसद दलितों और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के आंकड़े जुटाना था। सर्वे में कुल 8065 पुरुष-महिलाओं ने भाग लिया था और इससे संबंधित एक शोधपत्र 6 जनवरी को एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। टेक्सास यूनिवर्सिटी, जेएनयू और रिसर्च इंस्टीट्यूट कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक ने मिलकर इस सर्वे कराया था।
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दलित और गैर-दलित हिन्दुओं में अतंरजातीय विवाह के मामलों में सामने आया कि राज्यों की बड़ी आबादी इसके खिलाफ है। सर्वे के मुताबिक राजस्थान की 60 फीसद और यूपी की 40 फीसद ग्रामीण आबादी ऐसी है जो अंतरजातीय विवाह का विरोध करती है। सर्वे में शामिल लोगों ने ऐसे विवाह को रोकने के लिए एक कानून की मांग भी की है।
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महिलाओं के सामाजिक स्तर को लेकर किए गए सवाल पर सामने आया कि आधे से ज्यादा लोग महिलाओं के घर से बाहर काम करने पर सहमत नहीं थे, जाहिर ही कि महिलाओं का बाहर काम करना अब भी सामाजिक रूप से अच्छा नहीं माना जाता।
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