धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 587

किसी गांव में एक किसान रहता था, जो बहुत मेहनत करता था, लेकिन उसके जीवन की परेशानियां खत्म नहीं हो रही थीं, वह बहुत गरीब था। किसान देवी का परम भक्त था और काम करते हुए भी उनका ध्यान करता रहता था।

एक दिन देवी उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुईं। देवी ने कहा, “तुम्हारी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हूं, तुम जो भी चाहते हो, वह वरदान मैं तुम्हें दे सकती हूं।”

किसान थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह देवी से क्या मांगे।

सोच-विचार करने के बाद उसने कहा, “देवी मां, मैं अभी ठीक से निर्णय नहीं ले पा रहा हूं। मुझे कल तक का समय दीजिए, तब मैं आपसे वरदान मांगूंगा।”

देवी ने उसकी बात मान ली और अंतर्ध्यान हो गईं।

देवी के जाने के बाद किसान बहुत चिंतित हो गया। उसने सोचा, “मेरे पास रहने के लिए अच्छा घर नहीं है, तो मुझे एक सुंदर घर मांग लेना चाहिए।” फिर उसे ख्याल आया, “जमींदार के पास बहुत ताकत होती है, तो क्यों न जमींदार बनने का वरदान मांगूं?” लेकिन फिर उसने सोचा, “जमींदार से भी अधिक शक्तिशाली तो राजा होता है तो मुझे राजा बनने का वरदान मांगना चाहिए।”

इस तरह, सोचते-सोचते पूरा दिन निकल गया और रात में भी सोच-विचार करने की वजह से उसे नींद नहीं आई। वह यह तय नहीं कर सका कि देवी से क्या वरदान मांगे।

अगले दिन सुबह होते ही देवी फिर से प्रकट हुईं और वरदान मांगने के लिए कहा। किसान ने देवी से कहा, “देवी, कृपया मुझे यह वरदान दें कि मेरा मन हमेशा आपकी भक्ति में लगा रहे और मैं हर परिस्थिति में संतुष्ट रहूं।”

देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, “तथास्तु!” और फिर पूछा, “तुमने मुझसे धन-संपत्ति क्यों नहीं मांगी?”

किसान ने उत्तर दिया, “देवी, मेरे पास धन नहीं है, लेकिन उस धन आने की उम्मीद ने ही मेरी मानसिक शांति छीन ली। मैं दिनभर तनाव में रहता हूं और रात में ठीक से सो नहीं पाता। इसलिए मुझे वह धन नहीं चाहिए, जिससे मेरे जीवन की सुख-शांति ही समाप्त हो जाए।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, किसान को जब यह एहसास हुआ कि धन या पद केवल अस्थायी सुख दे सकते हैं, लेकिन उनके पीछे भागने से मानसिक शांति खत्म हो जाती है, तभी उसने सबसे महत्वपूर्ण वरदान मांगा: संतोष। जो व्यक्ति हर परिस्थिति में संतुष्ट रहना सीख लेता है, वही सच्चे अर्थों में सुखी होता है।

आज हम जो चाहते हैं, कल वह भी छोटा लगने लगता है। किसान की तरह पहले घर की इच्छा, फिर जमींदार बनने की, फिर राजा बनने की, यही मन की प्रवृत्ति है। इच्छाएं अनंत हैं, और इनके पीछे भागना तनाव का कारण बनता है।

किसान ने खुद अनुभव किया कि केवल ‘धन की उम्मीद’ ने ही उसकी नींद छीन ली। उसने यह समझ लिया कि अगर उम्मीद ही अशांति ला सकती है, तो वास्तविक संपत्ति तो शांति ही है।

जब हमारा मन किसी उच्चतर शक्ति से जुड़ा होता है और हम आंतरिक रूप से स्थिर रहते हैं, तब बाहरी परिस्थितियां हमारे सुख को प्रभावित नहीं कर पातीं। किसान ने यही बुद्धिमत्ता दिखाई।

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