धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 586

एक महात्मा एक गांव में सत्संग के बाद लोगों की जिज्ञासा का उत्तर दे रहे थे। लोग तरह—तरह के सवाल कर रहे थे—महात्मा सबका उत्तर काफी सरलता से दे रहे थे। इस दौरान एक व्यक्ति ने महात्मा से कहा, मुझे जीने की कला सीखनी है। क्या आप मुझे जीने की कला सीखा सकते हैं?

इस पर महात्मा सभी जिज्ञासुओं से पूछा कि सबसे ज्यादा बोझ कौन सा जीव उठा कर घूमता है? किसी ने कहा गधा तो किसी ने बैल तो किसी ने ऊंट अलग—अलग प्राणियों के नाम बताए। लेकिन महात्मा किसी के भी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। महात्मा ने हंसकर कहा – गधे, बैल और ऊंट के ऊपर हम एक मंजिल तक बोझ रखकर उतार देते हैं। इसके बाद वे भार मुक्त हो जाते है।

लेकिन, इंसान अपने मन के ऊपर मरते दम तक विचारों का बोझ लेकर घूमता है—
किसी ने बुरा किया है उसे न भूलने का बोझ। आने वाले कल का बोझ। अपने किए पापों का बोझ। अपने आने वाली पीढ़ियों की चिंता का बोझ। इस तरह कई प्रकार के बोझ लेकर इंसान जीता है। जिस दिन इस बोझ को इंसान उतार देगा तब सही मायने मे जीवन जीना सीख जाएगा। महात्मा ने व्यक्ति से कहा— जब इन बोझ को उतार देने की क्षमता आ जाएगी, उसी दिन जीने की कला आ जाएगी।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हम सभी अपने जीवन को भूतकाल और भविष्य की चिंता में खो देते हैं। ऐसे में हम अपना वर्तमान भी गंवा देते हैं। यही से हम अपने जीवन से आनंद के सभी रस को खो देते हैं। जीवन में हर क्षण आनंद चाहते हो तो आज में जीना सीखों। जीवन अपने—आप सुधर जाएगा।

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