बेंगलुरु,
कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार द्वारा चुनाव के पहले खेला गया लिंगायत कार्ड भले ही बीजेपी के लिए परेशानी बन गया हो, लेकिन उससे भी बड़ी मुसीबत बीजेपी के लिए हिंदी से कन्नड़ ट्रांसलेट करने वाले नेता बन गए हैं।
ताजा मामला बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की दवानागिरी की रैली का है। यहां अमित शाह ने सिद्धारमैया सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि, ” सिद्धारमैया सरकार कर्नाटक का विकास नहीं कर सकती। आप मोदी जी पर विश्वास करके येदुरप्पा को वोट दीजिये। हम कर्नाटक को देश का नंबर वन राज्य बनाकर दिखाएंगे।”
लेकिन अमित शाह के इस बयान की किरकिरी तब हुई जब धारवाड़ से बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी ने इसे कन्नड़ में गलत ट्रांसलेट कर दिया। उन्होंने कहा कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, दलित और पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं करेंगे। वो देश को बर्बाद कर देंगे। आप उन्हें वोट दीजिये।”
बता दें कि यह पहला मौका नहीं है जब उत्तर भारतीय बीजेपी नेताओं को दक्षिण भारत में प्रचार करने में दिक्कत हुई हो। इसके पहले फरवरी में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेंगलुरु में सभा करने आए थे तब रैली में आए अधिकतर लोगों को हिंदी में दिया हुआ भाषण समझ ही नहीं आया।
इस बारे में बीजेपी प्रवक्ता डॉ. वमनाचार्य ने आजतक से बातचीत में बताया कि, “यह सही बात है कि कर्नाटक की जनता को हिंदी में भाषण देने वाले नेताओं की कई बातें समझ नहीं आती हैं। फिलहाल कई रैलियों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कन्नड़ ट्रांसलेशन केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े करते हैं तो वहीं कुछ जगह यह काम प्रह्लाद जोशी संभालते हैं।”
उन्होंने आगे बताया कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में नेता हिंदी भाषा में भाषण देंगे उन जगहों पर हिंदी से कन्नड़ में ट्रांसलेशन करने के लिए कार्यकर्ता और नेता मदद करेंगे।
वहीं, पिछले चुनाव में बीजेपी के लिए ट्रांसलेशन का काम कर चुके एक कन्नड़ ट्रांसलेटर ने बताया कि, ” इस बार बीजेपी अपने नेताओं से ट्रांसलेशन में मदद ले रही है। इस कारण कई जगह सही बातें भी मजाक बन जाती है।
चित्रदुर्ग में अमित शाह ने अपने आधे भाषण में ट्रांसलेटर की मदद ली। फिर आधा भाषण उन्होंने हिंदी में दिया। उन्होंने जब हिंदी में कन्नड़ के लोगों से पूछा कि क्या आप येदुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं? तो यह बात लोगों को समझ नहीं आई और उन्होंने नहीं कह दिया।
इसी तरह के वाकये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हुबली रैली में भी हुए थे। यही नहीं, गृहमंत्री राजनाथ सिंह की दिसंबर में हुई रैली में भी कई लोग हिंदी नहीं समझ पाए थे।