हिसार

महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी सीसवाल में शिवलिंग की स्थापना

आदमपुर (अग्रवाल)
आदमपुर से करीब 10 किलामीटर दूर गांव सीसवाल व मोहब्बतपुर के मध्य स्थित पुरातन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले 750 सालों का रिकार्ड उपलब्ध है। बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकार्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था। हिसार से उत्तर-पश्चिम दिशा में सिंधु घाटी की सभ्यता व मोहन जोदड़ो-हड़प्पा कालीन सभ्यता की समकालीन प्राचीन सीसवालिय सभ्यता वर्तमान गांव सीसवाल की जगह पनपी। सीसवालिय सभ्यता के कारण इस गांव का नाम सीसवाल पड़ा जो सरस्वती नदी की सहायक नदी दृश्दवंती के किनारे बसा हुआ था।

भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई से इस सभ्यता का पता चला। प्रसिद्ध इतिहासकार डा.के.सी. यादव के शोध पत्रों मेें इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भिवानी के पास नौरंगाबाद में सैन्धव सभ्यता पनपी। सीसवालिय लोगों की संपन्नता को देखते हुए सैन्धवों ने सीसवालिय लोगों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का वर्णन नही मिलता लेकिन इस युद्ध के बाद दोनों सभ्यताएं आत्मसात होकर एक हो गई तथा इसके सीसवालिय-सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा। सीसवाल कुरुक्षेत्र-हस्तिनापुर जितना पुराना है। करीब 5,150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे तथा मां कुंती शिव भक्त थी। अपने कुछ समय के प्रवास के दौरान माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की जो वर्तमान में शिव मंदिर में मौजूद है।

बताया जाता है कि मंदिर के स्थान पर पहले एक फ्रास का पेड़ हुआ करता था जहां एक संत तपस्या करते थे। तपस्यारत संत को एक बार स्वप्न में पेड़ के नीचे शिवलिंग दबा हुआ दिखाई दिया। संत ने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। बाद में खुदाई करने पर 9-10 फीट लंबा शिवलिंग मिला जो पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यही शिवलिंग इस मंदिर की नियति का आधार बना।

इसे एक चमत्कार व दैवयोग ही कहा जाएगा कि जब मंदिर निर्माण के लिए सामग्री को लेकर चिंता की गई तो आकाशवाणी हुई कि निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाए, सामग्री उसी वृक्ष के नीचे से मिल जाएगी। मंदिर का निर्माण वृक्ष के नीचे से मिली तमाम आवश्यक सामग्री के साथ निर्बाध गति से हुआ। शिवालय में अब तक सुरक्षित पड़ी ईंट भी उसी वृक्ष के नीचे से निकली हुई बताई जाती है।


भारत के सबसे प्राचीन 4 मंदिरों में से एक है सीसवाल धाम: जैन
सावन माह में भगवान शिव के भक्तों के लिए आदमपुर का सीसवाल धाम विशेष महत्व रखता है। शिवालय में कांवडिय़ों के जमघट और उनके बम-बम के उद्घोषों से पूरा गांव शिवमय हो जाता है। भक्तों की अटूट आस्था का केन्द्र बने इस शिवालय में देश के कोने-कोने से श्रद्घालु आते हैं। करीब 300 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने के बाद यहां गंगाजल चढ़ाने वाले कांवडिय़े स्वयं एक आलौकिक आध्यात्मिक अनुभूति महसूस करते हैं।

जन-साधारण में मान्यता है कि सच्चे मन और श्रद्घाभाव वाले भक्तों की यहां मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मंदिर की देखरेख के लिए बनी कमेटी के प्रधान घीसाराम जैन का दावा है कि यह भारत के सबसे प्राचीन 4 मंदिरों में से एक है। अपने दावे का आधार वे केंद्रीय पुरातत्व से विभाग से मिली सूचना को बताते हैं। यह सूचना मंदिर की प्राचीनता व ऐतिहासिकता से जुड़ी बताई गई है। शिवलिंग की लंबाई 4 फीट है और अंदर की ओर भी इतनी ही होने का अनुमान है। ऐसे प्राकृतिक एवं असाधारण शिवलिंग कम ही देखने को मिलते हैं। शिवलिंग के चारों ओर लिखी शब्दावली एक विशेष भाषा में लिखी गई है, जो बहुत ही सूक्ष्म है और इसे सुक्ष्म आंखों से पढऩा नामुमकिन है। मंदिर के निर्माण के लिए खुदाई से ईंटें अपने आप में असाधारण हैं। जिनकी लंबाई 1.25 फीट व चौड़ाई 0.75 फीट है।

इन तमाम विशिष्टïताओं के चलते धार्मिक जगत में अपनी खास पहचान बना चुके इस मंदिर से जुड़े इतिहास को लिपिबद्घ करवाने की मांग शिव भक्त कई बार कर चुके हैं। जैन ने बताया कि अगर इस तरफ पुरात्तव विभाग सकारात्मक कदम उठाए तो इस प्राचीन शिव नगरी का आध्यात्मिक स्वरूप शिव भक्तों के सामने आ सकेगा तथा साथ ही यह शिवालय धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी सामने आ सकता है। मंदिर के पुजारी मनोजचंद्र शर्मा का कहना है कि सीसवाल का यह शिवालय अपनी कई विशेषताओं और अद्भूत वातावरण के चलते देशभर में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से असीम सुख की प्राप्ति होती है।

माना जाता है कि यहां मन और लगन से पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है। सावन माह में विशेष तरीके पूजा करने से अलग-अलग कामनाएं पूरी होती है। जिसके लिए सारी जानकारी मंदिर में उपलब्ध है। मेला संयोजक राकेश शर्मा ने बताया हर वर्ष की भांति 8 अगस्त को मंदिर प्रांगण में विशाल जगराता आयोजित किया जाएगा तथा रात्रि को कांवडिय़ों द्वारा कांवड़ें चढ़ाई जाएगी। अगले दिन 9 अगस्त को विशाल मेेले का आयोजन होगा।

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Jeewan Aadhar Editor Desk