श्रीकृष्ण ने उज्जयिनी आजकल का उज्जैन के महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा ली। जब गुरुदक्षिणा देने की बारी आई तब सांदीपनि ने मांगा कि उनका खोया पुत्र वापस लाकर दें। वो शंखासुर के कब्जे में था। शंखासुर प्रभास क्षेत्र के सागर में रहता था।
श्रीकृष्ण प्रभास क्षेत्र सागर क्षेत्र में गए और शंखासुर का वध करके गुरु के पुत्र को वापस लाए। तभी श्रीकृष्ण ने समुंद्र के बीच में एक टापू देखा। उन्होंने उस टापू का नक्शा अपने दिमाग में बैठा लिया। समय बीतने पर जरासंध के आक्रमण से बचने के लिए इसी टापू पर श्रीकृष्ण ने द्वारिका नगरी बसाई।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला ने संदेश मिलता है कि हम जो भी काम करें, पूरे खुले दिमाग से करें। हर चीज पर नजर रखें। कुछ चीजें उस समय आपके काम की नहीं होती लेकिन भविष्य में वो किसी काम आ सकती हैं। हमेशा दूरदृष्टि रखकर ही चीजों के बारे में सोचना चाहिए। वर्तमान में काम करते हुए भविष्य के बारे में भी विचार और योजनाएं बनाते रहना चाहिए। हर काम में दूरदर्शिता जरूरी है। आंखें खुली और दिमाग को चौकन्ना रखना अत्यंत आवश्यक है। श्रीकृष्ण ने जिस टापू को अपने बचपन के दिनों में देखा उसका उपयोग वर्षों बाद अपनी प्रजा की रक्षा के लिए किया। ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाने वाला कभी भी जीवन के समर में हारता नहीं है।