धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—223

एक बार, कृष्ण के जन्मादिवस के अवसर पर उत्सव मनाने के लिये बहुत बड़ी तैयारियाँ की गयीं थीं। नृत्य संगीत और भी बहुत कुछ! लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए पर कृष्ण घर में ही बैठे रहे। वे शायद उसमें भाग लेना नहीं चाहते थे। वैसे तो कृष्ण हर तरह के उत्सव के लिये हमेशा तैयार ही होते थे, पर, इस दिन, किसी वजह से उनकी इच्छा नहीं थी।
रुक्मिणी आयी और पूछने लगी, “नाथ, आपको क्या हो गया है? क्या बात है? आप उत्सव में शामिल क्यों नहीं हो रहे? कृष्ण बोले, “मुझे सिरदर्द है”। हमें नहीं मालूम, उनको वास्तव में सिरदर्द था या नहीं! हो सकता है कि वाकई हो और ये भी संभव था कि वे नाटक कर रहे हों!! उनमें वो योग्यता थी!!!

कृष्ण बोले, “कोई, जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊँगा”।
रुक्मिणी बोली, “हमें वैद्यों को बुलाना चाहिये”। तो वैद्य आये। उन्होंने हर तरह की दवाईयां दीं। कृष्ण बोले, “नहीं, ये सब चीजें मुझ पर असर नहीं करेंगीं। लोगों ने पूछा, “तो हमें क्या करना चाहिये?”। तब तक बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गये थे। सत्यभामा आयी, नारद आये। हर कोई परेशान था। “क्या हो गया? क्या हुआ है? कृष्ण को सिरदर्द है। हम उन्हें ठीक करने के लिये क्या करें”?

कृष्ण बोले, “कोई, जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊँगा”। सत्यभामा बोली, “ये क्या बात हुई? मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ पर ये नहीं हो सकता कि मैं अपने पैरों की धूल ले कर आपके सिर पर लगाऊँ। हम ऐसा काम नहीं कर सकते। रुक्मिणी रो रही थी। “हम ये कैसे कर सकते हैं। ये तो आपका अनादर होगा, अपमान होगा। हम ये नहीं कर सकते”। नारद भी पीछे हट गये। “मैं ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहता। आप स्वयं भगवान हैं। मुझे नहीं मालूम कि इसमें क्या रहस्य है, पता नहीं इसमें कौन सा जाल होगा? मैं अपने पैरों की धूल आपके सिर पर रखूँगा तो हमेशा नरक की आग में जलूँगा। मैं ऐसा कोई काम करना नहीं चाहता”।

चारों ओर बात फैल गयी। हर कोई सकते में था, “हम ये काम नहीं कर सकते। हम सब उन्हें बहुत प्यार करते हैं पर ऐसा कर के हम नरक में जाना नहीं चाहते”। उत्सव मनाने के लिये लोग कृष्ण का इंतज़ार कर रहे थे पर कृष्ण अपना सिरदर्द ले कर बैठे थे।

फिर ये बात वृंदावन तक पहुँची। गोपियों को मालूम पड़ा कि कृष्ण को सिरदर्द है। तब राधा ने अपनी साड़ी का पल्लू (फाड़ कर) ज़मीन पर बिछा दिया और सब गोपियाँ उस पर नाचने लगीं। उन्होंने फिर वो पल्लू नारद को दे कर कहा, ” इसे ले जाईये और कृष्ण के सिर पर बाँध दीजिये”। नारद वो धूल भरा पल्लू ले आये और उसे कृष्ण के सिर पर बाँध दिया। कृष्ण का सिर दर्द तुरंत ठीक हो गया!

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कृष्ण ने हमेशा स्पष्ट रूप से बताया कि उनके लिये कौन सी चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी? हालाँकि वे राजाओं के साथ घूमते थे और उन्हें बहुत से राज्य भेंट किये गये पर उन्होंने वे नहीं लिये। उनके लिये यही (सच्चा, निस्वार्थ, सरल प्रेम) ही महत्वपूर्ण था।

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