धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 387

एक लड़की ने, एक सन्त जी को बताया कि मेरे पिता बहुत बीमार हैं और अपने पलंग से उठ भी नहीं सकते क्या आप उनसे मिलने हमारे घर पे आ सकते हैं। सन्त जी ने कहा, हां बेटी! मैं जरूर जाऊँगा। संत जब उनसे मिलने उसके घर पर गए तो देखा कि एक बूढ़ा और बीमार आदमी पलँग पर दो तकियों पर सिर रख कर लेटा हुआ है।

लेकिन एक खाली कुर्सी उसके पलँग के सामने पड़ी थी। सन्त जी ने उस बूढ़े और बीमार आदमी से पूछा, कि मुझे लगता है कि शायद आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे।
उस वृद्ध आदमी ने कहा, जी नहीं, आप कौन हैं?

सन्त जी ने अपना परिचय दिया और फिर कहा मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास हो गया है।

वो आदमी बोला, सन्त जी, अगर आपको बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाजा बंद कर दीजिये। संत जी को थोड़ी हैरानी तो हुई, फिर भी सन्त जी ने दरवाजा बंद कर दिया।

वो बीमार आदमी बोला कि दरअसल इस खाली कुर्सी का राज मैंने आजतक भी किसी को नहीं बताया। अपनी बेटी को भी नहीं, मैं अपने पूरे जीवन में ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है। लेकिन मैं प्रत्येक दिन मंदिर जाता अवश्य था लेकिन कुछ समझ नहीं आता था।

लगभग चार साल पहले मेरा एक दोस्त मुझे मिलने आया, उसने मुझे बताया, कि हर प्रार्थना भगवान से सीधे ही हो सकती है। उसी ने मुझे सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो और ये विश्वास करो कि भगवान खुद इस कुर्सी पर तुम्हारे सामने बैठे हैं, फिर भगवान से ठीक वैसे ही बातें करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो!, वो हमारी हर फरियाद सुनता है, और जब मैंने ऐसा ही करके देखा मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर तो मैं प्रत्येक दिन दो-दो घंटे तक ऐसे ही भगवान से बातें करने लगा।

लेकिन मैं इस बात का विशेष ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले। अगर वो देख लेती तो उसे लगता कि मैं पागल हो गया हूँ।

ये सुनकर सन्त जी की आँखों में, प्रेम और भाव से आँसू बहने लगे, सन्त जी ने उस बुजुर्ग से कहा कि आप सबसे ऊँची भक्ति कर रहे हो, फिर उस बीमार आदमी के सिर पर पर हाथ रखा और कहा अपनी सच्ची प्रेम भक्ति को ज़ारी रखो।

सन्त जी, अपने आश्रम में लौट गये, लेकिन पाँच दिन बाद वही बेटी सन्त जी से मिलने आई और उन्हें बताया कि जिस दिन आप मेरे पिता जी से मिले थे, वो बेहद खुश थे, लेकिन कल सुबह चार बजे मेरे पिता जी ने प्राण त्याग दिये हैं।

बेटी ने बताया, कि मैं जब घर से अपने काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया मेरा माथा प्यार से चूमा, उनके चेहरे पर बहुत शांति थी, उनकी आँखे आँसुओं से भरी हुई थीं, लेकिन वापिस लौटकर मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी वो ऐसी मुद्रा में अपने बिस्तर पर बैठे थे जैसे खाली कुर्सी पर उन्होंने किसी की गोद में अपना सिर झुका रखा हो, जबकि कुर्सी तो हमेशा की तरह खाली थी।

सन्त जी, मेरे पिता जी ने खाली कुर्सी के आगे सिर क्यों झुका रखा था?
बेटी से पिता का ये हाल सुन कर सन्त जी फूटफूट कर रोने लगे और मालिक के आगे फरियाद करने लगे, हे मालिक, मैं भी,जब इस दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं, मुझ पर भी ऐसी ही कृपा करना।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, यदि हम भी इसी तरह अपने इष्ट देव की गोद में बैठकर, यहाँ से जाना चाहते हैं तो प्रत्येक पल आप अपने इष्टदेव की उपस्थिति को हर जगह महसूस करेगें, एक दिन हमारी अवस्था भी अवश्य बदलेगी।

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Jeewan Aadhar Editor Desk