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एक सुनसान रास्ते में घूमते समय नसरुद्दीन ने घोड़े पर सवार कुछ लोगों को अपनी और आते देखा। मुल्ला का दिमाग चलने लगा। उसने खुद को लुटेरों के कब्जे में महसूस किया जो उसकी जान लेने वाले थे। उसके मन में खुद को बचाने की हलचल मची और वह सरपट भागते हुए सड़क से नीचे उतरकर दीवार फांदकर कब्रिस्तान में घुस गया और एक खुली हुई कब्र में लेट गया।
घुड़सवारों ने उसे भागकर ऐसा करते देख लिया। कौतूहलवश वे उसके पीछे लग लिए। असल में घुडसवार लोग तो साधारण व्यापारी थे। उन्होंने मुल्ला को लाश की तरह कब्र में लेटे देखा।
“तुम कब्र में क्यों लेटे हो? हमने तुम्हें भागते देखा। क्या हम तुम्हारी मदद कर सकते हैं? तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” – व्यापारियों ने मुल्ला से पूछा।
“तुम लोग सवाल पूछ रहे हो लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि हर सवाल का सीधा जवाब हो” – मुल्ला अब तक सब कुछ समझ चुका था – “सब कुछ देखने के नज़रिए पर निर्भर करता है। मैं यहाँ तुम लोगों के कारण हूँ, और तुम लोग यहाँ मेरे कारण हो।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हम सभी के साथ ऐसा ही हो रहा है। हम सच्चाई से दूर भागते है और सच्चाई हरदम हमारा पीछा करती है। भागते—भागते हम जीवन के अंतिम क्षण में पहुंचते है, तो वहां भी सच्चाई हमारे सामने होती है। इसलिए सदा सच के साथ रहो,जीवन में कभी भयभीत नहीं होना पड़ेगा।
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