धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—31

एक बहुत अमीर बूढ़ा आदमी था। उसे अपने चित्र बनाने का बहुत ज्यादा शौंक था। एक बार उसने एक चित्रकार से अपना चित्र बनाने के लिए कहा। चित्रकार ने उस बूढ़े आदमी का चित्र बनाने के लिए कई दिनों तक कड़ी मेहनत की । आखिरकार चित्र बनकर तैयार हो गया। उसने उस बूढ़े आदमी को संदेशा पहुँचाया कि उसका चित्र बनकर तैयार हो गया है । वो बूढ़ा आदमी उस चित्रकार की दुकान में अपना चित्र लेने के लिए चला गया। दुकान में जाते समय वो अपने साथ अपने पालतू कुत्ते मोती को भी लेकर गया । उस बूढ़े ने अपने कुत्ते को आगे करते हुए कहा को ‘देखो मोती इस चित्र को यह तुम्हारे मालिक का चित्र है’ कैसा बना है ? परन्तु कुत्ते ने तो उस चित्र की तरफ देखा तक नहीं।

उस अमीर बूढ़े ने चित्रकार से कहा के मुझे नहीं चाहिए यह चित्र अगर यह चित्र मेरे मोती को पसंद नहीं तो मुझे भी यह पसंद नहीं है। इस चित्र में मेरा कुत्ता मुझे ही नहीं पहचान पाया। चित्रकार एक चित्रकार होने के साथ–साथ एक बुद्धिमान इंसान भी था। उसे पता था के इसका हल क्या होना चाहिए? उसने उस बूढ़े आदमी से कहा, ‘सर आप कल आना में आपका ऐसा चित्र बना दूंगा कि यह आपको और आपके कुत्ते को खूब पसंद आएगा और वो इसे चाटने लगेगा।

अगले दिन बूढा आदमी अपने कुत्ते को साथ लेकर उस चित्रकार की दुकान में पहुंचा, कुत्ता चित्र को देखते ही जीभ हिलाने लगा और वो चित्र के पास दौड़ता हुआ पहुंचा और उसने चित्र को चाटना शुरू कर दिया। बूढा आदमी इस चित्र को देखकर बहुत खुश हुआ, उसने कहा के अब बना है मेरा असली चित्र बहुत खूब! इस चित्र के बदले चित्रकार ने उस बूढ़े से बहुत सारा धन लिया।

बूढ़े के वहां से जाने के बाद चित्रकार बहुत खुश था कि कैसे उसने पहले बाले चित्र में कुछ भी नहीं बदला था, उसने तो बस उस चित्र पर मांस का मसालेदार टुकड़ा लेकर चित्र पर घिसा दिया था , जिससे सूंघकर कुत्ता उसने चाटने लगा था।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, बुद्धि से बड़ी से बड़ी समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

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