धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—400

एक पिता अपने छोटे बेटे की बुरी आदतों से बहुत परेशान था। वह कई बार अपने बेटे को समझा चुका था, लेकिन बच्चा हर बार यही कहता था कि वह जब बड़ा होगा तब वह सारी बुरी आदतें छोड़ देगा। कुछ दिनों बाद गांव में एक संत आए। संत बहुत ही सरल स्वभाव और विद्वान थे।

संत से जो भी मिलने आता था, वह उससे आसानी से मिल लेते थे और उनकी समस्याओं का निराकरण करते थे। जब पिता को संत के बारे में पता चला तो वह भी उनसे मिला और अपने बेटे की समस्या बताई। संत ने पिता से कहा कि कल तुम अपने बेटे को मेरे पास बगीचे में भेजना। अगले दिन पिता ने अपने बेटे को संत के पास बताए गए बाग में भेज दिया। बच्चे ने संत को प्रणाम किया और दोनों बाग में टहलने लगे। कुछ देर बाद संत ने बच्चे को एक छोटा सा पौधा दिखाया और पूछा कि क्या तुम इसे उखाड़ सकते हो। बच्चे ने कहा कि ये कौन सा बड़ा काम है, मैं इसे अभी उखाड़ देता हूं और बच्चे ने पौधा उखाड़ दिया।

थोड़ी देर बाद संत ने बच्चे को थोड़ा बड़ा पौधा दिखाया और उसे उखाड़ने के लिए बोला। बच्चा खुश हो गया, उसे ये सब एक खेल की तरह लग रहा था। बच्चे ने पौधे को उखाड़ना शुरू किया तो उसे थोड़ी ज्यादा ताकत लगानी पड़ी, लेकिन उसने पौधा उखाड़ दिया। इसके बाद संत ने बच्चे को एक पेड़ दिखाया और कहा कि उसे उखाड़ दो। बच्चे ने पेड़ का तना पकड़ा, लेकिन वह उसे हिला भी नहीं सका। बच्चे ने कहा कि इस पेड़ को उखाड़ना असंभव है।

संत ने बच्चे से कहा कि ठीक इसी तरह बुरी आदतों को जितनी जल्दी छोड़ देंगे, उतना अच्छा रहेगा। जब बुरी आदतें नई होती हैं तो उन्हें छोड़ना आसान होता है। लेकिन आदतें जैसे-जैसे पुरानी होती जाएंगी, उन्हें छोड़ पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। बुरी आदतों के कारण जीवन में दुख बढ़ता है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हर इंसान के अंदर कुछ गलत आदतें होती हैं, जिनसे उन्हें नुकसान तो पहुंचता ही है। साथ ही आसपास के लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। इसलिए हमें अपनी बुरी आदतों को समय के साथ बदल लेनी चाहिए। वरना आगे चलकर बहुत ही पछताना पड़ता है।

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