धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 404

एक नगर में बड़े संत हुए। उनका शिष्य नगर का अरबपति किरोड़ीमल सेठ था। वो हर रोज संत से पूछता था मौत निश्चित है। लेकिन मौत का दिन क्यों नहीं बताया जाता। जन्म के साथ ही पंड़ित को मृत्यु का दिन भी बता देना चाहिए। यदि वो मृत्यु का निश्चित दिन बता दें तो आदमी उसी तरीके से काम करते हुए समय पर अपने संसारिक कार्य पूरे कर सके। संत ने किरोड़ीमल सेठ को कहा—समय आने पर इसका जवाब दूंगा।

उस नगरी का राजा भी उस संत जी का भक्त था। संत जी ने राजा से कहा कि आपकी नगरी में किरोड़ीमल सेठ है। चंदन की लकड़ी की दुकान है। उसको फाँसी की सजा सुना दो और 40 वर्ष बाद चांदनी चैदस को फाँसी का दिन रख दो। जेल में सेठ की कोठरी (कक्ष) में फलों की टोकरी भरी रहे तथा दूध का लोटा एक सेर (किलोग्राम) का भरा रहे। खाने को खीर, हलवा, पूरी, रोटी तथा सब्जी देना।

राजा ने आज्ञा का पालन किया। जेल में सेठ जी को दो दिन बंद हुए हो गए। निर्बल हो गया। संत जेल में गया। प्रत्येक बंदी से मिला। सेठ जी को देखकर संत ने पूछा,कहाँ के रहने वाले हो? क्या नाम है?

सेठ बोला,हे महाराज! आपने पहचाना नहीं, मैं किरोड़ीमल हूँ चंदन की दुकान वाला।

संत जी बोले, अरे किरोड़ीमल! तुम दुर्बल कैसे हो गए? कुछ खाते-पीते नहीं। अरे! फलों की टोकरी भी भरी है, दूध का लोटा भरा है। थाली में हलवा, खीर रखी है।

सेठ जी बोले, हे महाराज! राजा ने मौत की सजा सुना रखी है। कसम खाकर कहता हूँ कि मैं निर्दोष हूँ। बचा लो महाराज। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं।

संत जी बोले,भाई मरना तो सबने है। फिर क्या डरना। खा-पीकर मौज कर।

सेठ जी ने सलाखों में से हाथ निकालकर चरण पकड़ लिए। बोला, बचा लो महाराज! कुछ ना खाया-पीया जाता, चांदनी चैदस दीखै सै।

संत ने कहा, सेठ किरोड़ीमल! जैसे आज तेरे को चांदनी चैदस को मृत्यु निश्चित दिखाई दे रही है, ऐसे सबको पता होता है कि मृत्यु निश्चित है। लेकिन ये नहीं पता मृत्यु होगी कब?? यदि मृत्यु का दिन निश्चित करके बता दिया जाएं तो आदमी हर पल मरता है। डरता है। डर—डर कर जीता है और वो पुरुषार्थ न​हीं कर पाता। इसीलिए किसकी मृत्यु कब—कहां और कैसे होगी इसका ज्ञान ईश्वर ने किसी को नहीं दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें हर सांस में ईश्वर का सिमरन करना चाहिए। जीवन को सद्कार्य में लगाना चाहिए। पता नहीं कब—कहां और कैसे मृत्यु अपने आगोश में ले लें। इसलिए जीते जी भक्ति,सेवा और परमार्थ का खजाना भर लेना चाहिए। यही सच्चा साथ देना वाला खजाना है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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