धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—241

पुराने समय में एक आश्रम में गुरु अपने शिष्यों के साथ रहते थे। वे हमेशा यही सीख देते थे कि हमें अपना काम खुद करना चाहिए, कभी भी दूसरों से मदद लेने के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए। सभी शिष्यों को भी ये बात अच्छी तरह ध्यान थी।

एक दिन गुरु अपने शिष्यों के साथ दूसरे गांव जा रहे थे। रास्ते में एक नाला भी था। गुरु और शिष्यों को उस नाले को पार करके दूसरे गांव जाना था। जब गुरु के साथ सभी शिष्य नाला पार कर रहे थे, तभी गुरु के हाथ से कमंडल छुट गया और नाले में गिर गया।

गुरु वहीं रुक गए। सभी शिष्य सोचने लगे कि अब ये कमंडल कैसे निकालेंगे? इसे कौन निकालेगा? तभी एक शिष्य गांव में किसी सफाईकर्मी को खोजने के लिए चला गया। बाकी सारे शिष्य वहीं बैठ गए और कमंडल निकालने की योजना बनाने लगे। ये देखकर गुरु को बहुत दुख हुआ। क्योंकि, उन्होंने सिखाया था कि अपना काम स्वयं करना चाहिए। किसी दूसरे की मदद के लिए इंतजार नहीं करना चाहिए। कमंडल गुरु भी निकाल सकते थे, लेकिन वे शिष्यों की परीक्षा लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कमंडल नहीं निकाला। वे सिर्फ ये सब देख रहे थे।

काफी देर बाद एक शिष्य उठा और नाले में हाथ डालकर कमंडल खोजने लगा। जब हाथ डालने के बाद भी कमंडल नहीं मिला तो वह स्वयं नाले में उतर गया और कमंडल खोज निकाला। ये देखकर गुरु प्रसन्न हो गए, क्योंकि शिष्य ने उनकी सीख को अपने जीवन में उतार लिया था। संत ने उस शिष्य की प्रशंसा की और कहा कि इसी तरह हमें अपने कामों के लिए किसी दूसरे की मदद का इंतजार नहीं करना चाहिए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो लोग दूसरों के भरोसे बैठे रहते हैं, वे कभी भी अपनी समस्याओं को हल नहीं कर पाते हैं और अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। अपनी मदद खुद करने वाले लोग ही घर-परिवार और समाज में सम्मान हासिल करते हैं। यही सफलता का सूत्र है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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