धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज—419

किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहु के साथ रहता था। परिवार सुखी संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी।

बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चूका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था।

घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था।

एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे। बेटा ऑफिस से आया था भूख ज्यादा थी, सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहु और उसका एक बेटा भी खाने लगे।

बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने को हुए थाली हाथ से छिटक गयी थोड़ी दाल टेबल पे गिर गयी।

बहु बेटे ने घृणा दृष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाने में लग गए।

बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरू किया तो खाना कभी कपड़ों पे गिरता कभी जमीन पर।

बहु चिढ़ते हुए कहा – हे राम! कितनी गन्दी तरह से खाते हैं मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं, बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो। उनका बेटा यह सब मासूमियत से देख रहा था।

अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गयी। पिता की डबडबाती आँखे सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रही थी।

बूढ़ा पिता रोज की तरह खाना खाने लगा, खाना कभी इधर गिरता कभी उधर। छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ देख रहा था।

माँ ने पूछा क्या हुआ बेटे! तुम दादा जी की तरफ क्या देख रहे हो और खाना क्यों नहीं खा रहे।

बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला – माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करूँगा।

बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहु दोनों काँप उठे। शायद बच्चे की बात उनके मन में बैठ गयी थी। क्यूंकी बच्चा ने मासूमियत के साथ एक बहुत बढ़ा सबक दोनों लोगो को दिया था।

बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पे खाने के लिए बिठाया और बहु भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ ना हो।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, माँ बाप इस दुनियाँ की सबसे बड़ी पूँजी हैं आप समाज में कितनी भी इज्जत कमा लें या कितना भी धन इकट्ठा कर लें लेकिन माँ बाप से बड़ा धन इस दुनियां में कोई नहीं है।

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