धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 557

एक गरीब शिवभक्त को भगवान शंकर ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा की वो उसके घर कल सुबह आएंगे। अगले दिन वह आदमी भगवान् शिव के लिए अच्छे अच्छे पकवान बनाता है और प्रभू का इंतजार करने लगता है। उसके साथी उसे काम पर चलने के बुलाने के लिए आते है तो वो उन्हें कहता है—आज भगवान शंकर उसके घर भोजन करने आयेंगे। इसलिए आज वो काम पर नहीं जायेगा।

उसका जवाब सुनकर उसके साथी उसकी हंसी उड़ाते हुए चले जाते है। इंतजार करते हुए शाम होने को आ गई। तभी उसके पास एक औरत आती है और कहती है सुबह से कुछ नहीं खाया कुछ खाने को मिल सकता है क्या??

उस गरीब शिवभक्त ने सोचा, शंकर प्रभू तो अभी तक नहीं आए। अब वो आयेंगे तो उनके लिए ताजा भोजन बनाकर दूंगा। इसलिए इस औरत को भोजन करवा देता हूं। उसने बड़े प्रेम से आसन पर बैठाकर श्रद्धा के साथ उस औरत को कहा, यह भगवान शंकर के लिए बना प्रसाद है। आप इसे ग्रहण करें। औरत के भोजन करते ही एक भिखारी आ गया। भिखारी ने भोजन की मांग की। शिवभक्त ने उसे भी शिव प्रसाद के रुप में भोजन करवाया।

भिखारी के जाते ही एक साधु आए और बोले कि उन्हें बहुत तेज भूख लगी है। इस पर शिवभक्त ने कहा, मेरे पास सुबह का बना शिवप्रसाद है। लेकिन एक साधु को मैं सुबह का बना प्रसाद कैसे दे सकता हूं। आप आसन ग्रहण कीजिए ,मैं आपके लिए ताजा प्रसाद बना देता हूं। इस पर साधू ने कहा— जो पड़ा है—वो ही दे दो। मैं खाने के लिए इंतजार नहीं कर सकता। इस पर शिवभक्त ने उन्हें प्रसाद परोस दिया। साधु ने खाना खाते ही कहा—आज काफी समय बाद वो भोजन करके तृप्त हुए है।

देर रात तक भगवान शंकर नहीं आते, तो वह आदमी मायूस हो जाता है। इसी मासूसी में वो बिना भोजन किए ही सो जाता है। रात को फिर स्वप्न में भगवान शंकर आएं तो गरीब शिवभक्त उन्हें शिकायत भरे लहजे में कहते है कि आज ना तो दहाड़ी पर जाने दिया और ना ही भोजन करने आएं। आपको नहीं आना था तो खाना क्यों बनवाया। भगवान शिव उसे कहते हैं कि वे उसके घर पर आज तीन बार आएं। और तीनों बार ही प्रसाद ग्रहण किया।

इस पर शिवभक्त पूछता है—प्रभू आप कब आएं। मैंने तो आपको नहीं देखा। इस पर शंकर कहते है— पहले औरत के वेश में, फिर भिखारी और अंत में साधु के वेश में आ कर उससे भोजन ग्रहण कर चुके हैं। शिवभक्त हाथ जोड़कर कहता है—क्षमा करें,आप आएं और मैं आपको पहचान भी नहीं पाया। तब शंकर बोले—हर जीव में जो ईश्वर को देखता है, ईश्वर सदा उसके साथ रहता है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, ईश्वर हमें प्रत्येक दिन मिलते हैं। लेकिन किस वेश में मिलते हैं—ये उसकी माया है। इसलिए हमें हर किसी से विनम्रता से मिलना चाहिए। ना जानें किस रुप में हमें ईश्वर की प्राप्ति हो जाएं। इसलिए संत नामदेव जी ने कहा है— जर्रे—जर्रे में है झांकी भगवान की—किसी सूझ वाली आंखों ने पहचान ली।

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