धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 555

महाभारत युद्ध से पहले पांडवों और कौरवों के बीच चौसर का एक खेल हुआ था, जिसने इतिहास की दिशा ही बदल दी थी। इस खेल में शकुनि मामा की चालबाजियों और कुटिल योजनाओं के चलते पांडव अपना राजपाट, वस्त्र और स्वयं को भी दांव पर लगाकर हार गए थे। यही नहीं, इस खेल के बाद जो सबसे दुखद और निंदनीय घटना घटी, वह थी द्रौपदी का अपमान, जब उसे भरी सभा में घसीट कर लाया गया।

लेकिन उस भयावह क्षण में भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाकर पूरे संसार को दिखा दिया कि जब-जब धर्म संकट में होता है, तब-तब वह स्वयं उतर आते हैं। इन्हीं घटनाओं के बीच एक कम प्रसिद्ध लेकिन अत्यंत रोचक प्रसंग भी है एक ऐसा समय जब स्वयं श्रीकृष्ण ने शकुनि के साथ चौसर खेला था। यह कथा कम लोगों को पता है लेकिन इसमें छिपा है रणनीति, बुद्धि और धर्म का गहरा संदेश।

महाभारत के अनुसार, जब कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने मध्य स्तर में था तब कौरवों को इस बात का आभास हो गया था कि एक के बाद एक पराक्रमी योद्धाओं की मृत्यु हो रही है और युद्ध पांडवों के पक्ष में जा रहा है। वहीं, उसी समय अंगराज कर्ण भी अर्जुन द्वारा मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। ऐसे में कौरवों के पास कोई शक्तिशाली योद्धा नहीं बचा था। तब शकुनी ने युक्ति लगाई और श्री कृष्ण को युद्ध समाप्त होने के बाद सूर्यास्त के समय अपने शिविर में चौसर खेलने के लिए बुलाया। श्री कृष्ण सब जानते थे कि शकुनी के मस्तिष्क में क्या चल रहा है लेकिन फिर भी वह उसके बुलाने पर गए। शकुनि ने श्री कृष्ण के सामने यह शर्त रखी कि वह शकुनि के साथ एक खेल चौसर का खेलें।

शर्त अनुसार अगर शकुनी जीतता तो युद्ध वहीं बिना आगे लड़े समाप्त हो जाता जिसके चलते खुद शकुनी, दुर्योधन और अन्य बचे हुए कौरवों के प्राण बच जाते एवं पांडवों को उनका राजपाठ वापस दे दिया जाता और अगर श्री कृष्ण चौसर में जीतते तो युद्ध जारी रहता और पांडवों द्वारा कौरवों का अंत शकुनी एवं दुर्योधन को स्वीकार था।

खेल शुरू तो हुआ लेकिन सिर्फ शकुनी ही चाल चलते गए क्योंकि जब-जब श्री कृष्ण की बारी आई तब-तब उन्होंने अपनी बारी छोड़ते हुए शकुनी को ही आगे चाल चलने के लिए कहा। जब चौसर का खेल अपने अंतिम चरण पर था शकुनी ने श्री कृष्ण को चौसर खेलने और अंतिम एक चाल चलने के लिए जोर दिया और तब एक लीला हुई। श्री कृष्ण ने जैसे ही चौसर के पासों को अपने हाथों में लिया, वैसे ही पासे चूर-चूर होकर राख हो गए। शकुनी यह देख डर गया और उसने श्री कृष्ण से इसका मतलब पूछा। तब श्री कृष्ण ने शकुनी को उत्तर दिया कि नकारात्मकता से भरे ये पासे कृष्ण स्पर्श मात्र से राख हो गए, अगर श्री कृष्ण युधिष्ठिर की जगह चौसर खेलते तो युद्ध ही नहीं होता।

श्री कृष्ण ने शकुनी को बताया कि कौरवों के अधर्म के अंत के लिए ही श्री कृष्ण ने न तो युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों को चौसर खेलने से रोका और न ही युधिष्ठिर के बदले वो खुद खेलने आये। सार कहता है कि श्री कृष्ण ने शकुनी के साथ कभी चौसर खेला ही नहीं, हां बस वो शकुनी को अपनी लीला दिखाने हेतु शकुनी के पास जरूर गए थे।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी,कोई कितना भी शातिर हो—लेकिन जब उसका पाला श्रीकृष्ण से पड़ता है तो उसकी सभी चालाकियां धरी की धरी रह जाती है। इसलिए स्वयं को श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित कर दें। इसके बाद इस दुनियां के शातिर लोग आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। श्रीकृष्ण हर समय आपकी रक्षा करने के लिए किसी न किसी रुप में आते ही रहेंगे।

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