धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—554

एक दिन महात्मा जी भिक्षा मांगने जा रहे थे, सड़क पर एक सिक्का दिखा, जिसे उठाकर उन्होंने झोली में रख लिया। उनके साथ जा रहे दोनों शिष्य इससे हैरान हो गए। वे मन में सोच रहे थे कि काश सिक्का उन्हें मिलता, तो वे बाजार से मिठाई ले आते।
महात्मा जी जान गए। वह बोले यह साधारण सिक्का नहीं है, मैं इसे किसी योग्य व्यक्ति को दूंगा, पर कई दिन बीत जाने के बाद भी उन्होंने सिक्का किसी को नहीं दिया।

एक दिन महात्मा जी को खबर मिली कि सिंहगढ़ के महाराज अपनी विशाल सेना के साथ उधर से गुजर रहे हैं। महात्मा जी ने शिष्यों से कहा, सोनपुर छोड़ने की घड़ी आ गई।

शिष्यों के साथ महात्मा जी चल पड़े। तभी राजा की सवारी आ गई। मंत्री ने राजा को बताया कि ये महात्मा जा रहे हैं। बड़े ज्ञानी हैं। राजा ने हाथी से उतर कर महात्मा जी को प्रणाम किया और कहा, कृपया मुझे आशीर्वाद दें।

महात्मा जी ने झोले से सिक्का निकाला और राजा की हथेली पर उसे रखते हुए कहा, हे नरेश, तुम्हारा राज्य धन-धान्य से संपन्न है। फिर भी तुम्हारे लालच का अंत नहीं है। तुम और पाने की लालसा में युद्ध करने जा रहे हो। मेरे विचार में तुम सबसे बड़े दरिद्र हो। इसलिए मैंने तुम्हें यह सिक्का दिया है। राजा इस बात का मतलब समझ गया। उन्होंने सेना को वापस चलने आदेश दिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, लालच इंसान को इतना अंधा कर देता है कि उसे अच्छे और बुरे में फर्क दिखाई नहीं देता।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

स्वामी राजदास : ड़र

Jeewan Aadhar Editor Desk

सत्यार्थप्रकाश के अंश—52

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—369

Jeewan Aadhar Editor Desk