धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—439

संत रविकुमार त्याग और वैराग्य का जीवन व्यतीत करते थे। वह निरंतर ईश्वर का स्मरण करते और संतो के साथ आध्यात्मिक चर्चाओं में लीं रहते थे। लोग उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे और उनका आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दूर से आते थे।

किन्तु संत रविकुमार इस लोकप्रियता के अहंकार से कोसो दूर अत्यंत विन्रम रहते थे। संत रविकुमार को आकाश में उड़ने की सिद्धि प्राप्त थी। एक बार संत रविकुमार से संत वर्मदेव मिलने आए। संत वर्मदेव के पास पानी के ऊपर चलने की शक्ति थी। संत वर्मदेव को नहीं पता था कि संत रविकुमार के पास आकाश में उड़ने की शक्ति है।

अहंकारवश संत वर्मदेव ने संत रविकुमार को नीचा दिखाने की सोची। उन्होंने संत रविकुमार से कहा – क्यों न हम झील के पानी के ऊपर चलते हुए आध्यात्मिक चर्चा करें। संत रविकुमार उनके अहंकार वश संकेत को समझ गए। संत रविकुमार शांत भाव से बोले – आध्यात्मिक चर्चा अगर हम आज आकाश में भ्रमण करते हुए करें तो कैसा रहेगा ?

संत वर्मदेव समझ गए कि रविकुमार आकाश में उड़ने की शक्ति जानते हैं। संत वर्मदेव निरुत्तर हो गए। वर्मदेव जी, जो काम आप कर सकते हैं वो तो एक छोटी-छोटी से मछली भी कर सकती है और जो काम मैं कर सकता हूँ वो तो एक छोटी-सी मक्खी भी कर सकती है, लेकिन सत्य इस करिश्मेंबाजी से कोसों दूर है।

उसे तो विन्रम होकर खोजना पड़ता है। आपको और हमें जो शक्तियां प्राप्त हैं, वह जनकल्याण के लिए हैं। इन शक्तियों का अंहकार करना उचित नहीं है। संत वर्मदेव ने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और अहंकार को त्यागकर जनकल्याण के लिए निकल पड़े।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मैं अथवा द्वैत के भाव का हम या अद्वैत भाव में विसर्जन ही ईश्वर की प्राप्ति का द्वार है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—210

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—277

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—433