धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—433

एक राजा कुशल प्रशासक था। प्रजा के सुख-दुःख के लिए वह प्रायः साधारण वेशभूषा में उनके बीच घूमा करता था। एक दिन जब राजा जंगल से गुजर रहा था तो उसने कुछ घुड़सवार लुटेरे अपनी ओर बढ़ते देखे।

राजा समझ गया कि यह लूटने की नीयत से आ रहे हैं। राजा साहसी था, अतः घबराने के बजाय उनसे लड़ने के लिए तैयार हो गया। उसी समय अचानक राजा के घोड़े का पैर एक गड्ढे में फंस गया। घोड़ा एक कदम भी हिल-डुल नहीं पा रहा था। उधर लुटेरे नजदीक आते जा रहा थे।

तभी वहां से गुजर रहे चार नवयुवक वहां आए। वे स्थिति की गंभीरता को समझ गए। उन्होंने लुटेरों पर हमला किया और उन्हें वहां से भगा दिया। राजा ने अपना असली परिचय देते हुए उनमें से हर युवक को अपनी इच्छित वस्तु मांगने के लिए कहा।

एक ने धन माँगा, दूसरे ने जमीन तो तीसरे ने मंत्री पद माँगा। राजा ने चौथे युवक से उसकी इच्छा जानी तो चौथे युवक कुछ सोचकर बोला महाराज आप हर वर्ष दो बार मेरे घर पर मेहमान बनकर आएं। राजा ने उसकी इच्छा मान ली। जब राजा चौथे युवक के घर पर मेहमान बनकर गया तो उसे युवक के जर्जर मकान और दरिद्रता का पता चला।

तब राजा ने उसे एक शानदार मकान बनवा दिया। राजा के प्रत्येक आगमन पर युवक को राजा की तरफ से कुछ ना कुछ अमूल्य सौगात मिलती रहती है।अपनी बुद्धिमानी से युवक ने राजा का आतिथ्य मांगकर स्वयं का जीवन सदा के लिए खुशहाल बना लिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, यथोचित लाभ पाने के लिए अवसरों का उपयोग बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से करना चाहिए।

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