आदमपुर (बंशीधर)
फाल्गुन माह में श्याम बाबा की पूजा का अपना महत्व है। फाल्गुन महीने की द्वादशी तिथि यानी बाहरस को वीर बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को शीश दान किया था और ‘हारे का सहारा’ की पदवी पाई थी। इस समय लोग दूर—दूर से राजस्थान के खाटू में जाकर श्याम बाबा के दर्शन करते हैं। लेकिन श्याम बाबा का नाता हरियाणा से ज्यादा रहा है। महाभारत वर्णन मिलता है कि भीम का पौत्र बर्बरीक अपनी माता से आशीर्वाद लेकर तीन बाण लेकर महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने के लिए रवाना हुए। उन्होंने अपनी माता को वचन दिया था कि वे युद्ध ने जिस पक्ष की हार होगी उसकी तरफ से विजेता के विरुद्ध युद्ध लड़ेंगे और तीन बाण में ही युद्ध का परिणाम बदल देंगे।
श्रीकृष्ण ने रोका बर्बरीक का रस्ता
जब श्री कृष्ण को अपने गुप्तचरों से पता चला था कि बर्बरीक कुरुक्षेत्र आ रहे हैं तब श्री कृष्ण ने उन्हें हिसार के बीड़ गांव में रोक लिया। श्रीकृष्ण ब्राह्मण वेश में वीर बर्बरीक से मिले और उन्होंने इस महान योद्धा की वीरता और दानवीरता की भी परीक्षा ली। बर्बरीक ने अपने तीन बाणों के चमत्कार से कृष्ण को लाजवाब कर दिया था और जब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि तुम किस पक्ष से युद्ध करोगे, तो बर्बरीक ने कहा कि अपनी मां को दिए वचन के अनुसार मैं ‘हारे का सहारा’ बनूंगा। वीर बर्बरीक के इस वचन के बाद ही श्रीकृष्ण ने उनके शीशदान की लीला रची।
बर्बरीक का शोक
बर्बरीक शीशदान के लिए तो सहर्ष तैयार हो गए, लेकिन उन्हें दुख हुआ कि वह अपने पिता, दादा व अन्य पूर्वजों के किसी काम नहीं आ सके। उन्होंने श्रीकृष्ण से अपने उद्धार का तरीका पूछा साथ ही बताया कि वह भी इस युद्ध में हिस्सा लेना चाहते थे, और इसे देखना चाहते थे।
बर्बरीक ने कृष्ण से विनीत स्वर में कहा, मैं भी इस युद्ध में भाग लेना चाहता था, लेकिन शीश दान के कारण ऐसा नहीं कर पाऊंगा इसका शोक है, मैं अपने पूर्वजों को मृत्यु के बाद क्या मुंह दिखाउंगा?
कृष्ण ने बताई शीश दान की वजह
श्रीकृष्ण बोले, दुख न करो बर्बरीक। अगर तुम शीश दान न करते तो अपने पूर्वजों के बिल्कुल काम नहीं आते। इसका कारण है तुम्हारा वचन। शुरुआत में तो तुम पांडव सेना से ही युद्ध करोगे, लेकिन वचन के कारण कौरव पक्ष को हारता देख उधर जा मिलोगे। इसके कारण फिर पांडव सेना हारने लगेगी। ऐसा देखकर तुम वापस इधर आ जाओगे। यह क्रम चलता रहेगा और युद्ध का कोई निर्णय न निकल पाने के कारण धर्म स्थापना का कार्य नहीं हो सकेगा। इसलिए मुझे यह करना पड़ा।
यहां किया शीशदान
इसके बाद उन्होंने बर्बरीक का शीश सुदर्शन चक्र से काट दिया। जिस स्थान पर सुदर्शन का प्रयोग कर श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को उनके धड़ से अलग किया था वह स्थान हिसार के बीड़ गांव में बरगद के पेड़ के नीचे का था जहां आज श्याम बाबा के धड़ की पूजा होती है। आज यह मंदिर श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध है।
श्रीकृष्ण पर शीश को यहां रखा
श्रीकृष्ण ने शीशदान लेकर उसे अमृत से सींचा और अमरबूटियों पर स्थिर कर कुरुक्षेत्र के पास सबसे ऊंची पहाड़ी पर रख दिया। वहां से वीर बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा और अंत समय में जब पांडवों को विजय का अहंकार भी हो गया तब बर्बरीक ने ही निष्पक्ष और न्यायप्रिय होकर उनका अहंकार भी तोड़ा। बर्बरीक ने जहां श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप का दर्शन किया था, वहां आज चुलकाना धाम स्थित है। हरियाणा राज्य के पानीपत के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चुलकाना धाम प्रसिद्ध है। श्री श्याम खाटू वाले का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर चुलकाना गांव में है। जैसे ही गांव में मंदिर की स्थापना हुई वे चुलकाना नरेश भी बन गए। चुलकाना धाम को कलयुग का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को बर्बरीक के शीश दान करने के कारण ही इस समय बाबा श्याम के भक्तों का जत्था बाबा के दरबार में हाजिरी लगाता है।
खाटू में ऐसे बना बाबा का मंदिर
बाबा की मान्यता तो पहले से थी। किवदंती है कि सदियों पहले मंदिर वाले स्थान पर एक गाय स्वतः आकर खड़ी हो जाती थी और उसके स्तनों से दुग्ध धारा बहने लगती थी। यह देख लोग आश्चर्य करने लगे थे। एक दिन इस स्थान पर खुदाई की गई तो भूगर्भ से बाबा का शीश प्रकट हुआ। उसी रात स्वप्न में खाटू नगर के राजा को मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली। इसके बाद उस स्थान पर मंदिर बनवाया गया और कार्तिक एकादशी को शीश मंदिर में विराजित कराया गया। यह तिथि वीर बर्बरीक के जन्म की थी। तबसे आज तक बाबा के इस दरबार में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। यहां पर एकादशी पर श्याम बाबा की पूजा की जाती है जबकि बीड़ और चुलकाना धाम में द्वादशी अर्थात बाहरस को पूजा की जाती है।
बाबा का बदलता है स्वरुप
खाटू के मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने बनवाया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर ने इस समय अपना वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में स्थापित की गयी थी। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बनी है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उन्हें बाबा का नित नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को तो इनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।
धड़ वाले स्थान पर ऐसे बना मंदिर
बर्बरीक यानी श्याम बाबा के धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार ज़िले के बीड़ गांव में होती है। इस गांव में श्याम बाबा का मंदिर है। कहा जाता है कि मुगलों के शासनकाल में, गांव के दो सगे भाइयों मौलूराम और बिहारी मुंदलिया पर हमला हुआ था। इस हमले की सूचना गांव में फैल गई और मौलूराम और मरडूराम पंडित जेली लेकर गांव की सीमा पर पहुंच गए। मौलूराम ने हमलावर मंदरु की छाती पर वार कर उसका वध कर दिया। इस मामले में मौलूराम और मरडूराम को गोहाना जेल भेज दिया गया।
जेल में पंडित मरडूराम को स्वप्न में बर्बरीक दिखाई दिए। बर्बरीक ने मूर्ति के पूर्व दिशा में मंदिर बनाने को कहा और उन्हें रिहा करने का वचन दिया। अगली सुबह मुगलों ने दोनों को जेल से रिहा कर दिया। उन्होंने हींस के पेड़ के नीचे से बर्बरीक की धड़ की मूर्ति निकाली। फिर उन पैसों से कच्ची ईंटों का छोटा सा मंदिर बनाया गया। यह मंदिर आज काफी भव्य रुप ले चुका हैं।