एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था और बीच-बीच में रुक कर अपने पैरों के निशान देख कर खुश होता। आगे बढ़ता पैरों के निशान देखता और खुश होता। इतने में एक लहर आई और उसके पैरों के सभी निशान मिट गये।
इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया। उसने लहर से कहा – ऐ लहर! मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तूने क्या किया? मेरे बनाये सुंदर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया, कैसी दोस्त हो तुम ?
तब लहर बोली – वो देखो पीछे से मछुआरे पैरों के निशान देख कर केकड़ों को पकड़ने आ रहे हैं। हे मित्र, तुमको वो पकड़ न लें, बस इसीलिए मैंने निशान मिटा दिए। ये सुनकर केकड़े की आँखों में आँसू आ गये।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमारे जीवन का सच भी यही है। कई बार हम सामने वाले की बातों को समझ नहीं पाते और अपनी सोच अनुसार उसे गलत समझ लेते हैं। जबकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अतः मन में बैर और वैमनष्यता लाने से बेहतर है कि हम दिल से सोचें और दिल की सुने—फिर निष्कर्ष निकालें। कभी—कभी हम सिर्फ और सिर्फ दिमाग की सुनते है और गलत निर्णय कर बैठते है। आप अपनी सोच को बदलेंगे तो नजरिया भी बदला जा सकता हैं।