धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सानंद जी महाराज के प्रवचनों से—489

एक बार अकबर ने बीरबल से कहा – मुझे परमात्मा दिखा दो। राजा का हुक्म था। बीरबल बहुत परेशान था कि परमात्मा को कैसे राजा को दिखाये। इसी विचार को लेकर बीरबल छुट्टी पर चला गया और उदास रहने लगा। एक दिन परिवार में चर्चा हुई, उदासी का कारण पूछा गया तो बीरबल ने बता दिया कि राजा ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं। बीरबल का बेटा बोला – कल सुबह मुझे आप साथ ले जायें। मैं अपने आप राजा को दर्शन करा दूंगा।

दूसरे दिन सुबह बीरबल और लड़का दरबार में पहुँचे और राजा को कहा मेरा लड़का आपके प्रश्न के उत्तर का समाधान करेगा। राजा ने सोचा यह लड़का क्या समाधान करेगा? लड़का बोला – इस वक्त मैं आपका गुरु हूँ, मुझे उचित स्थान दिया जाये। राजा ने सोचा बात तो ठीक कह रहा है। मैंने तो प्रश्न किया है, समाधान करने वाला गुरु समान होता है। राजा ने लड़के के लिए अपने साथ थोड़ा ऊँचा स्थान दिया।

लड़का बोला महाराज – एक दूध का कटोरा मंगाओ। राजा ने दूध का कटोरा मंगाया।

लड़का बोला – महाराज इस दूध में घी है। राजा बोला – हाँ है।

लड़का बोला – पहले मुझे आप उसका दर्शन कराओ।

राजा बोला – तू मुर्ख है। घी के दर्शन ऐसे थोड़े होते हैं। पहले दूध को गर्म करना पड़ता है फिर उसकी दही जमाना पड़ता है। फिर उसको मघानी में रिड़का जाता है। फिर मक्खन निकलता है फिर उसे गर्म-गर्म कढाई में डाला जाता है। फिर उसकी मैल निकाली जाती है। तब जाकर घी के दर्शन होते हैं। ऐसे ही थोड़े दर्शन होते हैं।

लड़का बोला – यही उत्तर है आपके प्रश्न का पहले इन्सान को तपना पड़ता है। फिर उसको जमना पड़ता है। फिर उसको साधना करनी पड़ती है। फिर उसको ज्ञान की अग्नि में तपना होता है। फिर उस ईश्वर के दर्शन होते हैं। अकबर समझ गया और बोला – तू वाकई ही मेरा गुरु है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, ईश्वर को जानने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। वैसे हर आत्मा में ईश्वर का अंश है और उसी को ईश्वर का रूप समझना चाहिए तभी सुख की प्राप्ति होती है। यह भी संसार का एक नियम है।
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