धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—512

श्री कृष्ण और बलराम ने कंस वध के बाद अपने माता-पिता देवकी और वासुदेव को रिहा करवाया और राज्य नाना उग्रसेन को सौंप दिया। वसुदेव जी ने कृष्ण और बलराम को शिक्षा प्राप्ति के लिए ऋषि सांदीपनि के आश्रम उज्जैन में दे भेज दिया। वही पर उनकी मित्रता सुदामा से हुई थी।

उन्होंने दोनों को वेद पुराण की शिक्षा के साथ-साथ धनुर्विद्या ,राजनीतिक शास्त्र, गणित शास्त्र आदि की विद्या दी। श्रीकृष्ण की स्मरण शक्ति इतनी तेज थी, माना जाता है कि उन्होंने 64 दिन सांदीपनि ऋषि के आश्रम में रह कर 64 दिनों में 64 विद्याएँ और 16 कलाएं सीख ली थी।

गुरु दक्षिणा का समय आया तो दोनों ने गुरु से गुरु दक्षिणा मांगने को कहा तो ऋषि संदीपनी और उनकी पत्नी ने श्री कृष्ण और बलराम को गुरु दक्षिणा में उनके पुत्र को वापस लाने के लिए कहा जो कि समुंद्र की लहरों में डूब चुका था।

अपने गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए दोनों कृष्ण और बलराम प्रभास क्षेत्र में गए और समुंद्र से लहरों में डूब चुके उनके पुत्र को वापस करने के लिए कहा, समुंद्र ने श्रीकृष्ण को बताया कि दैत्य शंखासुर समुद्र में छिपा है। मुझे लगता है कि आपके गुरु का पुत्र उसके पास है। भगवान कृष्ण और बलराम ने समुंद्र में जाकर शंखासुर को मारकर उसके पेट में गुरु के पुत्र को खोजा लेकिन वह नहीं मिला।

शंखासुर के शरीर से शंख बाहर निकला जिसे पांचजन्य शंख कहा जाता है। शंखाचूर के शरीर का शंख लेकर कृष्ण बलराम यमराज के पास पहुंचे। यमलोक में जाकर उन्होंने शंख बजाया। यमराज ने उनसे पूछा मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? श्रीकृष्ण कहने लगे,”मेरे गुरु के पुत्र को उसके पूर्व जन्म के पापों के कारण यहां लाया गया है, अब तुम उसे मुझे सौंप दो।” यह सुनकर यमराज ने श्री कृष्ण को ऋषि संदीपनी के पुत्र को सौंप दिया।

श्री कृष्ण और बलराम अपने गुरु के पास पहुंचे और गुरु दक्षिणा के रूप में उनके पुत्र को सौंप दिया। दोनों ने गुरु से पूछा कि आपको गुरु दक्षिणा में और क्या चाहिए तो गुरु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम दोनों ने शिष्य के कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाया है। सारी सृष्टि में तुम्हारा यश होगा और ऋषि संदीपनी ने श्री कृष्ण को जगतगुरु की उपाधि दी।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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