एक बार श्री कृष्ण जी सो रहे होते थे तो उनकी नींद एकदम से खुल जाती है और वह” जय श्री राधे ,जय श्री राधे “कहते है। रुकमणी जी उनके पास ही बैठी थी बड़े आश्चर्य से श्री कृष्ण से पूछती हैं प्रभु प्रेम तो मैं भी आपसे करती हूं लेकिन आप के मुख पर हमेशा राधा रानी का नाम क्यों होता है।
श्री कृष्ण कहते हैं रुक्मणी क्या तुम कभी राधा रानी से मिली हो? तो वह कहती है नहीं। श्री कृष्ण कहते हैं “जाओ फिर तुम आज राधा रानी से मिल कर आओ फिर तुम्हें पता चलेगा तो मेरे मुंह पर राधा रानी का नाम क्यों रहता है।” रुकमणी जी राधा रानी के लिए खीर लेकर उनसे मिलने जाती और उनके द्वार पर पहुंच कर देखती हैं एक रूपवान स्त्री वहां खड़ी हैं तो वह उनसे पूछती हैं “क्या आप राधा रानी है? ”
तो वह कहती है नहीं मैं तो उनकी दासी हूं। राधा रानी आपको सातद्वार पार करने के बाद मिलेंगी। जब रुक्मणी जी सात द्वार पार करने के बाद राधा रानी से मिलती हैं उनके मुख पर एक सूर्य के समान तेज था और उनका रूप बहुत ही तेजस्वी था। रुकमणी जी राधा रानी से कहती है कि” मुझे श्रीकृष्ण ने भेजा है”और उनके चरणों में प्रणाम करती हैं और उन्हें खीर खाने को देती हैं।
राधा रानी यह सोच कर कि मेरे कान्हा ने मेरे लिए खीर भेजी है एक ही घूंट में पी जाती है। रुकमणी जी प्रणाम करके वापस आ जाती है। आकर क्या देखती हैं श्री चरण कृष्ण के चरणों में बहुत से छाले पड़े हुए हैं। रुकमणी पूछती हैं,”प्रभु आप कहां गए थे जो आपके पैरों में इतने छाले पड़ गए।”
श्री कृष्ण पूछते हैं तुम राधा रानी के लिए क्या ले गई थी? तो वह बताती है कि खीर। तो वह कहते हैं कि “खीर इतनी गरम थी कि राधा रानी के मुंह में छाले पड़ गए और उनके हृदय में हमेशा मेरे चरण कमल का ध्यान रहता है इसलिए मेरे पैरों में छाले पड़ गए।”
अब रुकमणी जी को समझ आया उनके प्रेम में राधा रानी के प्रेम में क्या अंतर है।रुकमणी जी श्री कृष्ण से माफी मांगती हैं तो श्री कृष्ण कहते हैं माफी मांगनी है तो जाकर राधा रानी से मांगो। रुकमणी जी एक बार फिर से राधा रानी के पास जाती हैं और उनसे माफी मांगती हैं राधा रानी उन्हें अपने गले से लगा लेती हैं।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, राधा का श्रीकृष्ण के प्रति निश्चल प्रेम था। यही कारण है कि राधा की श्रीकृष्ण से कभी अलग पहचान नहीं बन पाई।